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तत्त्वाववोध भाग ६०
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अल्पताथी एम बने खरं; परंतु एथी ए तत्वोमां क अपूर्णता छे एमतो नधीज. आ कंइ पक्षपाती कथन नथी. विचार करी आखी सृष्टिमांथी ए शिवायनुं एक दशमुं तत्त्व शोधतां कोई काळे ते मळनार नथी. ए संबंधी प्रसंगोपात आपणे ज्यारे वातचित अने मध्यस्थ चर्चा थाय त्यारे निःशंका धाय.
उत्तरमां तेओए कयुं के आ उपरथी मने एम तो निःशंकता छे के जैन अद्भुत दर्शन छे. श्रेणिपूर्वक तमे मने केटलाक नवतत्वना भाग कही बताव्या एथी हुं एम बेधडक कही शकुं छउं के महावीर गुप्तभेदने पामेला पुरुष हता. एम सहजसाज वात करीने "उपन्नेवा" "विघनेवा" "धुवेवा" ए लब्धिवाक्य मने तेओए कं. ते कही वताव्या पछी तेओए एम जणाव्युं के आ शोना सामान्य अर्थमां तो कंड़ चमत्कृति देखाती नथी; उपजवु, नाश धनुं अने अचलता, एम ए त्रण शोना अर्थ छे. परंतु श्रीमन् गणधरोए तो एम दर्शित कर्तुं छे के ए वचनो गुरुमुखथी श्रवण करतां आगळना भाविक शिष्योने द्वादशांगीनुं आशय भरित ज्ञान धतुं हतुं १ ए माटे में कंडक विचारो पहोंचाडी जोया छतां मने तो एम लाग्युं के ए वननुं असंभवित छे, कारण अति अति सूक्ष्म मानेलुं सिद्धांतिक ज्ञान एमां क्यांथी शमाय १ ए संबंधी तमे कंइ लक्ष पहोंचाडी शकशो '