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१६६. श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत, मोक्षमाला. शोधी आपो; पापनी अने पुण्यनी प्रकृतियो कहीने कहां आ शिवाय एक पण वधारे प्रकृति शोधी आपो. एम कहेतां अनुक्रमे वात लीधी. प्रथम जीवना भेद कही पूछयु एमां कंइ न्यूनाधिक कहेवा मागो छो? अजीवद्रव्यना भेद कही पूछयु. कंइ विशेषता कहो छो? एम नवतत्व संबंधी वातचित थइ त्यारे तेओए थोडीवार विचार करीने का आतो महावीरनी कहेवानी अद्भुत चमत्कृति छे के जीवनो एक नवो भेद मळतो नथी; तेम पापपुण्यादिकनी एक प्रकृति विशेष मळती नथी; अने नवमुं कर्म पण मळ्तुं नथी. आवा आवा तत्त्वज्ञानना सिद्धांतो जैनमा छे ए मारुं लक्ष नहोतुं आमां आखी सृष्टि तत्वज्ञान केटलेक अंशे आवी शके खरं.
शिक्षापाठ ८७. तत्त्वावबोध भाग ६.
एनो, उत्तर आ. भणीथी एम थयो के हजु आप आटलं कहो छो ते पण जैनना, तत्त्वविचारो आपना हृदये आल्या नथी त्यांसुधी; परंतु हुं मध्यस्थताथी सत्य कई छउं के एमां जे विशुद्धज्ञान वताव्युं छे ते क्यांये नथी अने सर्व मतोए जे ज्ञान वताव्युं छे ते महावीरना तत्वज्ञानना एक भागमां आवी जाय छे. एनुं कथन स्यावाद छे, एक पक्षी नथी.
तमे कह्यु के केटलेक अंशे सृष्टिनुं तत्वज्ञान एमां आवी शके खरं; परंतु ए मिश्रवचन छे. अमारी समजवानी