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तावोध भाग ५०
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निर्मळ उंडा अने गंभिर विचार, स्वच्छ वैराग्यनी भेट ए तत्वज्ञानथी मळे छे.
शिक्षापाठ ८६. तत्त्वावबोध भाग ५.
एकवार एक समर्थ विद्वानसाथे निर्बंधप्रवचननी चमत्कृति संबंधी वातचित थइ ; तेना संबंधां ते विद्वाने जणान्युं के आटल हुं मान्य राखुं छउं के महावीर ए एक समर्थ तत्वज्ञानी पुरुष हताः एमणे जे बोध कर्यो छे, ते झीली लड़ प्रज्ञावंत पुरुषोए अंग उपांगनी योजना करी छे; नेना जे विचारो छे ते चमत्कृत्ति भरेला छे; परंतु ए उपरथी लोकालोकनुं ज्ञान एमां रधुं छे एम हुं कही न शकुं. एम छतां जो तमे कंइ ए संबंधी प्रमाण आपता हो तो हुं ए वातनी कंड़ श्रद्धा लावी शकुं. एना उत्तरमां में एम कछु के हुं कंड़ जैन वचनामृतने यथार्थ तो शुं पण विशेष भेदे करीने पण जाणतो नथी; पण जे सामान्य भावे जाणं छवं एथी पण प्रमाण आपी शकुं खरो. पछी नवतत्त्वविज्ञान संबंधी बातचित नीकळी. में कहूं एमां आखी सृष्टिं ज्ञान आवी जाय छे; परंतु यथार्थ समजवानी शक्ति जोइए पछी ते ए ए कथनतुं प्रमाण माग्यं, त्यारे आठ कर्म में कही बराव्यां; तेनी साथे एम सूचयुं के ए शिवाय एनाथी भिन्न भाव दर्शावे एवं नवसुं कर्म