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तत्त्वावरोध भाग १. १५९ उच्चगति साधी परिणामेमोक्ष साधशे निर्ग्रयप्रवचन, निग्रंथ गुरु इत्यादि धर्मतत्त्व पामवानां साधनो छे. एनी आराधनाथी कर्मनी विराधना छे.
शिक्षापाठ ८२. तत्त्वावबोध भाग १.
दशवकालिक मुत्रमा कथन छे के जेणे जीवाजीवना भाव नयी जाण्याते अबुध संयममां स्थिर केम रही शकशे? ए पचनामृचनुं तात्पर्य एम छे के तमे आत्मा, अनात्मानां स्वरुपने जाणो, ए जाणवानी परिपूर्ण अवश्य छे.
. आत्मा अनात्मानुं सत्य स्वरुप नियप्रवचनमांधीज माप्त यइ के छे. अनेक अन्य मतोमां ए वे तत्त्वो विपे विचारो दर्शाव्या छ, 'पण ते यथार्थ नथी. महा प्रज्ञावंत आचार्योए करेला विवेचन सहित प्रकारांतरे कहेलां मुख्य नवतत्त्वने विवेक बुद्धियी जे झेय करे छे, ते सत्पुरुष आत्मस्वरुपने ओळखी शके छे.
स्याद्वादशैली अनुपम, अने अनंत भावभेदयी भरेली छ र शैलीने परिपूर्ण वो सर्वज्ञ अने सर्वदर्शीज जाणी शके छतां एओनां वचनामृतानुसार आगम उपयोगयी यथामति नव तत्त्वतुं स्वरुप जाणवू अवश्यतुं छे, ए नवतत्व मिय श्रद्धा भावे जाणवायी परम विवेकबुद्धि, शुद्ध सम्यक्त्व अने प्रभाविक आत्मज्ञाननो उदय थाय छे. नव