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१५६ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीव मोक्षमाळा.
५. जाणवानां साधनसामान्य विचारमा ए साधनो जो के जाण्यां छे, तोपण विशेष कंडक विचारिये. भगनाननी आज्ञा अने तेनुं शुद्ध स्वरुप यथातथ्य जाणवू. स्वयं कोइकज जाणे छे. नहीं तो निर्ग्रथज्ञानी गुरु जणावी शके. निरागी ज्ञाता सर्वोत्तम छे. एटला माटे श्रद्धानुं वीज रोपनार के तेने पोषनार गुरु ए साधन रुप छे ए साधनादिकने माटे संसारनी निवृत्ति एटले शम, दम ब्रह्मचयोदिक अन्य साधनो छे. ए साधनो प्राप्त करवानी वाट कहींए तोपण चाले.
६. ए ज्ञाननो उपयोग के परिणामनां उत्रनो आशय उपर आवी गयो छे; पण काळभेदे कइ कहेवार्नु छे, अने ते एटटुंज के दिवसमां वेघडीनो वखत पण नियमित राखीने जिनेश्वर भगवानना कहेला तत्ववोधनी पर्यटना करो. वीतरागना एक सिद्धांतिक शवपरभी ज्ञानावरणीयनो बहु क्षयोपशम थशे एम हुँ विवेकयी कहुंछ,
शिक्षापाठ ८१. पंचमकाळ. काळचक्रना विचारो अवश्य करीने जाणवा योग्य छे. श्री जिनेश्वरे ए कालचक्रना वे मुख्य भेद कह्या छ १ उत्सर्पिणी २ अवसर्पिणी. एकेका भेदना छ छ आरा छे. “आधुनिक वर्तन करी रहेलो आरो पंचमकाळ कवाय छे।