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१३२ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीन मोजमाना.
मन कोड्यीज अकसान जीती शहाय छ, नहीं नो गृहस्थाश्रमे अभ्यास करीने जीनाय छे; ए अभ्यास निम्रयतामां वह यह के के छतां सामान्य परिचय करवा मांगीए तो नेनो मुख्य मार्ग आ छे के ते जे दुरिच्छा करे तेने भूली जवी; तेम कर नहीं. ने ब्यारे नद्रस्मोडि विलास इच्छे, त्यारे आपवा नहीं. हुंकामां आपणे एयी दोरा नहीं पण आपणे एन द्वारः मानमार्ग चिंतच्यामां रोक. जिनेंद्रियता विना सर्व प्रकारनी उपाधि उभीन रही के त्यागे न त्याच्या जेवा थाय छे, लोक लजाए नेन सेवबो पडे छ. माटे अभ्यासे करीने पण मनन स्वाधीनतामां लई अवन्य आत्महित कर
शिक्षापाठ ६९. ब्रह्मचर्यनी नववाड. - ज्ञानीओए थोडा सद्रोमां केवा भेद अने के स्वरूप बनावेल छ? ए बडे केली व्धी वात्मान्नति याय छे ! ब्रह्मचर्य जेवा गमिर विषयर्नु स्वत्प संक्षेपमा अति चमकारिक रीते आधुं छे. ब्रह्मचर्यत्पी एक मुंदर झाड अने तेने रक्षा करनारी जे नव विधियों नेने वाहनुं त्प आपी आचार पाम्बामां विप स्मृति रही सके एवी सरलता करी छे. ए नव वा जेम नेम अहीं कही जहर.
१ वसति-जनचारी माधुए नी, पशु के पडंग एयी संयुक्त बमतिमांरवुनहीं. बी वे प्रकारनी छे-मनुष्यिणी