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ब्रह्मपर्यनी नववाड १३३ अने देवांगना. ए प्रत्येकना पाछा वे वे भेद छे. एकतो मूळ अने वीनी स्त्रीनी मूर्ति के चित्र. एमाथी गमे ते प्रकारनी स्त्री ज्यां होय त्यां ब्रह्मचारी साधुए न रहे, केमके ए विकारहेतु छे. पशु एटले तिर्यचिणी. गाय भैस इत्यादिक जे स्थळे होय ते स्थळे न रहेवू. अने पडंग एटले नपुंसक एनो वास होय त्यां पण न रहे. एवा प्रकारनो वास ब्रह्मचर्यनी हानि करे छे. तेओना कामचेष्टा हाव भाव इत्यादिक विकारो मनने भ्रष्ट करे छे..
२ कथा-मात्र एकली स्त्रियोनेज के एकज स्त्रीने धर्मोपदेश ब्रह्मचारीए न करवो. कथा ए मोहनी उत्पत्ति रुप छे. ब्रह्मचारीए स्वीना रुप कामविलास संबंधी ग्रंथो वांचवा नहीं, तेमज जेथी चित्त चळे एवा प्रकारनी गमे ते शृंगार संबंधी कथा ब्रह्मचारीए करवी नहीं.
३ आसन-स्त्रियोनी साथे एक आसने न वेस, तेमज ज्या स्त्री वेठी होय त्यांचे घडी मधीमां ब्रह्मचारीए न वेसवं. ए स्त्रियोनी स्मृतिन कारण छे, एथी विकारनी उत्पत्ति थाय छे. एम भगवाने कयुं छे.
४ इंद्रियनिरीक्षण-स्त्रीओनां अंगोपांग ब्रह्मचारी साधुए न जोवां न निरखवां. एनां अमुक अंगपर द्रष्टि एकाग्र थवाथी विकारनी उत्पत्ति थाय छे.