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११८ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाला थयो. पछी तेनी दुकाननो वहिवट जोयो. तेमां सोएक वहिवाटया त्यां वेठेला जोया. तेओ पण मायालु, विनयि अने नम्र ते ब्राह्मणना जोवामां आव्या. एथी ते बहु संतुष्ट थयो. एजें मन अहीं कंइक संतोपायुं. सुखी तो जगतमा आज जणाय छे एम तेने लाग्यं.
शिक्षापाठ ६२. सुखविपेविचार भाग२. ___केवां एनां सुंदर घर छे! केवी मुंदर तेनी स्वच्छता अने जाळवणी छे! केवी शाणी अने मनोज्ञा तेनी मुशील स्त्री छे ! केवा तेना कांतिमान अने कह्यागरा पुत्रोछे ! के संपीलु तेनुं कुटुंब छे! लक्ष्मीनी महेरपण एने त्यां केवी छे! आखा भारतमा एना जेवो वीजो कोइ सुखी नथी. हवे तप करीने जो हुं मागु तो आ महाधनाढ्य जेवूज सघळु मागु, बीजी चाहना करुं नहीं.
दीवस वीती गयो अने रात्रि थइ. सुवानो वखत थयो. धनाढ्य अने ब्राह्मण एकांतमां वेठा हता; पछी धनान्ये विप्रने आगमन कारण कहेवा विनंति करी.
विप्र-घेरथी एवो विचार करी नीकळ्यो हतो के बधाथी वधारे सुखी कोण छे ते जो ; अने तप करीने