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मुखविपे विचार भाग २. ११९ पछी एना जेवू मुख संपादन कर. आखा भारत ने तेनां सघळां रमणीय स्थळो जोयां; परंतु कोड राजाधिराजने त्यां पण मने संपूर्ण मुख जोवामां आव्युं नहीं. ज्यां जोडे त्या आधि, व्याधि अने उपाधि जोवामां आवी. आप भणी आवतां आपनी प्रशंसा सांभळी एटले हुँ अहीं आन्यो; अने संतोप पण पाम्यो. आपना जेवी रीद्धि, सत्पुत्र, कमाइ, स्त्री, कुटुंब, घर वगैरे मारा जोवामां क्यांय आन्यु नथी. आप पाते पण धर्मशील, सद्गुणी अने जिनेश्वरना उत्तम उपासक छो. एथी हुँ एम मार्नु छ के आपना जे मुख चीजे नथी. भारतमांआप विशेष मुखीछो. उपासना करीने कदापि देव कने या तो आपना जेवी मुखस्थिति याचं.
धनाढ्य-पंडितजी, आप एक बहु मर्मभरेला विचारयी नीकळ्या छो; एटले अवश्य आपने जेम छे तेम स्वानुभवी वान कहुं छउं; पछी जेम तमारी इच्छा थाय तेम करजो. मारे त्यां आपे जेजे मुख जोयां ते ते सुख भारतसंबंधमां क्यांय नथी एम आपे कडे तो तेम हशे; पण खरं ए मने संभवतुं नथी; मारो सिद्धांत एवोछे के जगत्मां कोई स्थळे वास्तविक सुख नथी. जगत् दुःखथी करीने दासतुं छे. तमे मने मुखी जुओ छो परंतु वास्तविक रीते ई. मुखी नथी.
विष-आपनुं आ कहे कोइ अनुभवसिद्ध अनेमार्मिक हशे में अनेक शास्त्रो जोयां छ; छतां आवा मर्मपूर्वक