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आ मोक्षमाळा मोक्षवधु माटेनी वरमाळा थाय ए सहज सिद्ध धायछे. तत्वज्ञान अने सत्शील, अथवा ज्ञान अने क्रिया, अथवा श्रुत अने चारित्र धर्मनी आराधना, अथवा सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन करीने सम्यक्चारित्र सरळभापामां सत्य जाणपणुं अने ते प्रमाणे सत्य वर्तन आ मोक्ष प्राप्तिनां साधन छे; अने ए साधनोनो आ ग्रंथमां वोधछे.
तो ते यथार्थ वांची- विचारी ते प्रमाणे प्रवर्तनारने मोक्ष केम सुलभ न होय ? अर्थात् तत्व समजवानो प्रयास करी, ते समजी सीधी रीते वर्त्ते तो तेने मोक्ष दूर नथी: आम तत्वज्ञान पामवानो, सत्शील सेववानो, अने परिणामे मोक्ष मेळववानो आखा ग्रंथमां बोधछे. तत्व जीज्ञासा जागृत करे, अने सद्वर्तनमां मेरे एवो स्थळे स्थळे उपदेश छे. अज्ञान अने मतमतांतर टाळवानो, मध्यस्थताथी तत्व उपर आववानो, एवी रुची उपजाववानो प्रयास स्थळे स्थळे छें, जे मोक्षनां कारणरूप छे. शिक्षापाठ मात्र मनन करवा योग्य छे. एटले प्रत्येकनुं प्रथक् अवलोकन न करता ए वांचनारने शीर राखवं योग्य छे. वांचनारने भलामणना पाठमां दर्शाच्या प्रमाणे विवेक पूर्वक, मनन पूर्वक, आ माळा कंठे धरवाथी प्रांत बहु हित थशे माटे सर्व सुज्ञ भाइओ, व्हेनोए विवेक पूर्वक, मध्यस्थताथी, ममत्व दूर करी बहुमान अने विनय पूर्वक आ ग्रंथ पठन-मनन कर, जेथी मोक्षनां कारणरूप थइ पडवानो आमाळानो हेतु सहज सिद्ध थाय. तथास्तु !