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अनुक्रमणिका
विषय * प्रवचनका उपोद्घात १ सर्वदेवकी श्रद्धापूर्वक श्रावकधर्म ... ... २ धर्मके आराधक सम्यकदृष्टिको प्रशंसा ... ३ मोक्षका बीज सम्यक्त्व, संसारका बीज मिथ्यात्व
(सम्यकदर्शन हेतु परम प्रयत्नका उपदेश) ४ सम्यक्त्व पूर्वक व्रतका उपदेश
वितका उपदेश ... ... ५ श्रावकके व्रतोंका वर्णन ६ श्रावकके बारह व्रत ७ गृहस्थको सत्पात्रदानकी मुख्यता ८ आहारदानका वर्णन ९ औषधदानका वर्णन १० शानदान अथवा शास्त्रदानका वर्णन ... ११ अभयदानका वर्णन १२ श्रावकको दानका फल १३ अनेक प्रकार पापोंसे बचने के लिये गृहस्थ दान करे १४ गृहस्थपना दानसे ही शोभता है ... ... १५ पात्रदानमें उपयोग हो वही सच्चा धन है ... १६ पुण्यफलको छोड़कर धर्मी जीव मोक्षको साधता है ... १७ मनुष्यपना प्राप्त करके या तो मुनि हो, या दान दे ... १८ जिनेन्द्र-दर्शनका भावभरा उपदेश
१०३ १९ धर्मात्मा इस कलियुगके कल्पवृक्ष हैं
१०९ २० धर्मी-भावकों द्वारा धर्मका प्रवर्तन
११२ २१ जिनेन्द्र-भक्तिवंत श्रावक धन्य है २२ सच्ची जिनभक्तिमें वीतरागताका आदर २३ श्रावककी धर्मप्रवृत्तिके विविध प्रकार
१२७ २४ श्रावकको पुण्यफलप्राप्ति और मोक्षकी साधना ...
१३१ २५ मोक्षमार्गमें निश्चय सहितका व्यवहारधर्म मान्य है १३७ २६ मोक्षकी साधना सहित ही अणुवतादिकी सफलता ... १४२ २७ भावकधर्मकी आराधनाका अन्तिम फल मोक्ष * स्वतंत्रताकी घोषणा (वस्तुस्वरूपकी स्वतंत्रता दर्शानेवाले दो विशिष्ट प्रवचन)
१४८ से १६४
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