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थो वीतरागाय नमः
अनुवादकोंकी ओरसे श्री पद्मनन्दि मुनिराज विरचित जैन-साहित्यकी सर्व-विख्यात एवं अनुपम कृति " पप्रनंदि पंचविंशतिका " के सातवें अधिकार “देशव्रत-उद्योतन" पर पूज्य आत्मज्ञ संत श्री कानजी स्वामी द्वारा दिये गये प्रवचनोंका संग्रह “भावकधर्मप्रकाश" (गुजराती) देखनेका सौभाग्य मिला। इस अनुपम संग्रहका लाभ हिन्दी भाषी मुमुक्षु भाई-बहिनोंको प्राप्त हो इस भावनासे इसका अनुवाद हिन्दीमें करनेका भाव हुआ। श्रावकोंको प्रतिदिनके छह कर्तव्योंके परिज्ञानकी आवश्यकता है। स्वामीजीके इन सुबोध प्रवचनोंसे इन कर्तव्योंका ज्ञान सहज ही हो जाता है। इस ग्रन्थके अनुवाद-कार्यमें हमें सोनगढ़ साहित्य प्रकाशन समितिकी ओरसे पूर्ण सहयोग व मार्ग-दर्शन मिलता रहा जिसके लिये हम उसके आभारी हैं।
अनुवादमें कहीं भी मूल गुजराती पुस्तकके भावमें अंतर न पड़े इसका पूरा ध्यान रखनेका प्रयत्न किया है, तथापि प्रमाद एवं अज्ञानवश जो श्रुटिया रह गई हों उन्हें सुहृद पाठक-नन पूर्वापर प्रसंगके आधार पर सही करते हुए हम पर कृपाभाव रखेंगे ऐसी आशा है।
__ अंतमें पुनः पुनः सत्पुरुष आत्मज्ञ संत पू. गुरुदेव श्री कानजी स्वामीका हम उपकार मानते हैं जिनके परम प्रभावसे हमें यह सत्प्रेरणा प्राप्त हुई । इत्यलम् । दि. १० सित. १९६८ )
संतचरण सेवीसनावद (म. प्र.)
-सोनचरण जैन -प्रेमचंद जैन M. Com.