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नवम विनय-समाधि अध्ययन
अरिल्स -
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(४)
विनय धरम में प्रेरित काहु उपायतें, जो जन कोपित होवत होन सुभाय तें । दिव्य रमा को आवति को वह मानवी, ताड़त दंड दिलाय सही वह मानवी ॥
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अर्थ - विनय में उपाय के द्वारा भी प्रेरित करने पर जो कुपित होता है, वह आती हुई दिव्य (स्वर्ग) लक्ष्मी को दण्डे से रोकता है ।
(५- ६)
अरिल्ल
त्यों सेनापति आदिन के गज घोर हैं, ते दुख पावत हैं देखन में आवते, त्यों सेनापति आदिन के गज घोर हैं, करते सुख के भोग सु देखे जावही,
आतम में अविनीतपनो धरि जो रहें । सेवा सहत करूर दंड पुनि पावते || आतम में सुविनीतपनो धरि जो रहें । रिद्धि हु पावत जगत बड़ो जस गावही ॥
अर्थ -- जो उपवाह्य (सवारी और युद्ध के काम में आने वाले) घोडे और हाथी अविनीत होते हैं. वे सेवाकाल में दुःख भोगते हुए देखे जाते हैं । किन्तु जो उपवाह्य घोड़े और हाथी सुविनीत होते हैं वे ऋद्धि और महान यश को पाकर सुख को भोगते हुए देखे जाते हैं ।
(७–८)
रिल्ल
तसे ही या जग में जे नर नार हैं, जिनके आतम में नहि विनय विचार है । होन सु देले जात हैं । अजोग सुनें अपमान ते
क्षत-विक्षत हो देह, तथा दुख पात हैं, दंड आयुधनि व्याकुल होय ते प्रान त, भरे दीनता-भाव परे पर-हाथ हैं, भूो प्यासे पीड़ित देखे जात हैं ।।
इन्द्रिय-गनते कडुए बैन
अर्थ - लोक में जो पुरुष और स्त्री अविनीत होते हैं, वे क्षत-विक्षत या दुर्बल, इन्द्रिय-विकल, दण्ड और शस्त्र के प्रहारों से जर्जर, असभ्य वचनों के द्वारा तिरस्कृत, करुण, परवश, भूख और प्यास से पीड़ित होकर दुख को भोगते हुए देखे जाते हैं ।