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________________ अष्टम आचार - प्रणिधि अध्ययन (६४) कवित तेसो वह समन सहे या देह दुःखनि को, इब्रिन के जीतन में परम प्रवीनो है, आगम वचन जाके हिय में वचन लागे, ममता- विहीन परिग्रहतें विहीनो है । कारे कारे बादल करम करि डारे दूर, शोभातें विराजमान ऐसो भाव लीनो है, बादल पटल मानो सकल विलग भए, रोहिनी-रमन ने प्रकाश प्रिय कीनो है । २०३ अर्थ — जो पूर्वोक्ति गुणों से युक्त है, दुःखों को सहन करने वाला है, जितेन्द्रिय है, श्रुतवान् है, ममता-रहित और अकिंचन है, वह कर्म रूपी बादलों के दूर होने पर उसी प्रकार शोभित होता है, जिस प्रकार कि समस्त मेघ-पटल से विमुक्त पूर्णमासी का चन्द्र शोभता है । अष्टम आचार-प्रणिधि अध्ययन समाप्त । - ऐसा मैं कहता हूँ । --
SR No.010809
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages335
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size13 MB
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