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पंचम पिण्डेषणा अध्ययन
१२१ (५०) कवित्तभली भांति जीति जिन इंद्रिय अधीन कोनी, तीव लाज लोनी गुन संजम के जामें है, ऐसो वह साधु सो अराधे उन संजतिकों, संजति महान तत्त्व के ज्ञान जुठाम हैं। भली भांति सीख लेय भीख सोधिवे की रीति, ताकों वह जानिके अनंद उर पाये हैं, ताके अनुसार तब गहत आदि करत विहार विचरत गणवंत जस गाये हैं।
अर्थ-संयत और बुद्ध श्रमणों के समीप भिक्षेपणा की विशुद्धि सीख कर सुप्रणिहित-इन्द्रिय अर्थात् जितेन्द्रिय और एकाग्र चित्त वाला भिक्ष उत्कृष्ट संयम और गुण से सम्पन्न होकर विचरे । इस प्रकार मैं कहता हूं।
पंचम पिडेषणा अध्ययन समाप्त