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चा०
रे (संभूछिम जंतुओ) उत्पन्न थाय छे, तथा घणा नवा घासना अंकुरा प्रकट थाय छे. तेथी तेवे मार्गे जतां ते पाणीओ वासना अंकुराथी ते करोळीयाना समूह.सुधी मार्गमा पथरायेला होय, तेथी रस्तो शोधमो मुश्केले पढे. तेथी ते जीवोना
सूत्रम् रक्षण माटे एक गामथी बीजे गाम न जाय, तेथी संयत (साधु) पोतेज समय जोइने अवसर आवतां चोमा करी ले. ( आने माटे कल्पमूत्रमा खुलासो करे छे के अपाड चोमासा पहेलां बरसाद आवी जाय तो एक मास प्रथमथी पण चोमासु करे, पण असाडमां तो अवश्ये स्थिरता करवी) हवे अपवाद मार्ग कहे छे.
से भिक्खू वा० सेज गामं वा जाव रायहाणि वा इमंसि खलु गामंसि वा जाव राय नो महई विहारभूमी नो महई वियारभूमी नो सुलभे पीढफलगसिज्जासंथारगे नो सुलभे फासुए उंछे अहेसणिज्जे जत्य बहवे समण० वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य अच्चाइन्ना वित्ती नो पन्नस्स निक्खमणे जाव चिंताए, सेवं नच्चा तहप्पगारं गाम वा नगरं वा जाव रायहाणि वा नो वासावासं उवल्लिइज्जा ॥ भि० से जं गाम वा जाव राय० इमंसि खलु गामंसि वा जाव महई विहारभूमी महई वियार० सुलभे जत्थ पीढ ४ सुलभे फा० नो जत्थ बहवे समण उवागमिस्संति वा अप्पाइन्ना वित्ती जाव रायहाणि वा तओ संजयामेव वासावासं उवलिज्जा ।। (मू० ५१२) ते भिक्षु तेवी राजधानी विगेरे कोइपण स्थानमां आव्या, पछी एम जाणे के विहार (स्वाध्याय) भूमी तथा विचार (स्थंडिल)
चित्त मळे तेवी नथी, तथा साधुने योग्य पीठ फलक शया संथारो विगेरे चोमासामा खास वापरवा योग्य उपकरणो के ॐ वस्तुओ मळवी दुर्लभ छे, तथा प्रामुक गोचरी मळवी दुर्लभ छे, तथा एपणीय आहार न मळे, तेज कहे छे-एटले साधुने उद्गम 81