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________________ CRORECRC ९८४॥ POREIALOGH040640FOTORE**ORE दोपरहित गोचरी लेवानी.छे, ते न मळे, तथा ते नगर विगेरेमां घणा श्रमण, ब्राह्मणो, कृपण, वणीमग विगेरे आवीने | भरायेला छे, अने वीजा आववाना छे, तेथी, घणा मागण भरावाथी आकीर्ण वृत्ति छे, एटले भिक्षा माटे अटन तथा स्वाध्याय सूत्रम् ध्यान करवा बहा जतां आवतां ते घणां भिक्षुक माणसोना भरावाथी ते गाम विगेरे संकोचायेल छे, त्यां जैनसाधुने जQ आवq तथा धर्म चितवन विगेरे क्रिया उपद्रव रहित न थाय. जो आवी अगवडो होय, तो तेवा क्षेत्रमा चोमासुं न करे, पण जो उपर || ॥९८४॥ टू बतावेली अगवडो न होय एटले भणवानी अने स्थंडिलनी जग्या होय, उचित उपकरण मळतां होय, पिंड शुद्ध मळतो होय, अन्य र भिक्षुको सामान्य प्रमाणमा होय, जतां आवतां घणो समय न लागतो होय, तो. त्यां चोमासुं करवू. हवे. वर्षाकाळ पुरो थये क्यारे विहार न करवो ते कहे छे. अह पुणेवं जाणिज्जा-चत्तारि मासा वासावासाणं वीइक्वंता हेमंताण य पंचदसरायकप्पे परिवुसिए, अंतरा से मग्गे बहुपाणा जाव ससंताणगा नो जत्थ बहवे जाव उवागमिस्संति, सेवं नचा नो गामणुगामं दूइजिज्जा । अह पुणेवं जाणिज्जा चत्तारि मासा० कप्पे परिवुसिए, अंतरा से मग्गे अप्पंडा जाव.ससंताणगा बहवे जत्थ समण० उवागमिस्संति सेवं नचा - तओ संजयामेव० दुइजिज्ज ॥ (सू० ११३) . हवे आ प्रमाणे साधुओ जाणे, के चोमासा संबंधी, चारमास पूरा थाय छे, अर्थात् कार्तिकी चोमासुं पूरु थयुं छे, त्यां जो * उत्सर्गथी वृष्टि न होय, तो एक मेज बीजे स्थळे जइने पारणुं करवू, पण जो दृष्टि चालु होय तो हेमंत रुतुना पांच-दस दीवस गये। यके विहार करवो, तेमां पण जो बीजे गाम जतां मार्गमां नानां जंतुनां इंडां पड्यां होय, गारो होय, करोळीयाना जाळां बाझी -CRACTERS
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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