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18 साधुनी संपूर्णता छे, ( आ सूत्रमा मांस-मदिरावाळां कुटुंचमांथी कोइए दीक्षा लीधी होय, तो तेवाए सगांने घेर गोचरी जुदा / सूत्रम् ८९५॥
न जवु, तेज श्रेयस्कर छे, कारणके कुबुदि केवी खराब छे, अने तेनुं जैन धर्ममां के मायश्चित छे ते नीचेनु बनेल - दृष्टांत वांचवा जेवु छे..
८९५॥ (कुमारपाळ राजाए जैनधर्म स्वीकार्या पहेलां मांसभक्षण करेलुं अने पाछळथी त्याग कर्यु हतुं, तेने एक समये घेवर खातां | मांसनो स्वाद आव्यो, तेथी श्रीमान हेमचंद्र आचार्य पासे आवीने पूछयु, के मने घेवरखावू कल्पे के नहि ? गुरुए कह्यं के नहि. || म-शामाटे ? उ-पूर्वनो दुष्ट स्वभाव मांसभक्षणनो याद आवे. कुमारपाळे कडं के त्यारे जो तेवु स्मरण थयुं होय तो तेनुं मने & मायश्चित शुं आवे ? उ-चत्रीश दांत पाडी नांखवान. तेज समये लुहारने वोलावी दांत खेची काढवा का, त्यारे हेमचंद्राचार्य ते । राजानी दृढता जोइ चीजु प्रायश्चित आप्यु आथी समजवान ए छे के 'तेवा' मांसभक्षणवाळां कुटुंबोमां जतां कुमारपाळ माफक खराब चीज याद आवी जायतो साधुपणुं भ्रष्ट थाय, पण वीजा साधु साथे होय तो तेनी शरमथी त्यां रहेनारो साधु पण ली बचे, अने सगांने पण मांस भक्षण न करवा बोध मळवाथी पापथी बचे.
चोथो उद्देशो समाप्त.
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