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पांचमो उद्देशो. .... आचा
चोथो कह्यो, हवे पांचमो उद्देशो कहे छे. तेनो आ प्रमाणे संबंध छे, गया उद्देशामां निर्दोष पिंड लेवानी विधि कही | */ सूत्रम्
अने अहीं पण तेज कहे छे. ॥८९६॥
से भिक्खू वा २ जाव पवि? समाणे से जं पुण जाणिज्जा-अग्गपिंडं उक्खिप्पमाणं पेहाए अग्गपिंड निक्खप्प माणं पेहाए अग्गपिडं हीरमाणं पेहाए अग्गपिंड परिभाइज्जमाणं पेहाए अग्गपिंडं परिभुजमाण पेहाए अग्गपिंडं पेहाए अग्गपिंड परिदृविज्जमाज पेहाए पुरा असिणाइ वा अवहाराइ वा पुरा जत्थऽण्णे समण वणीमगा खद्धं
२ उवसंकर्मति से इंता अमहवि खद्धं २ उवसंकमामि, माइहाणं संफासे नो एवं करेजा ।। (मू० २५)
ते भिक्षु गृहस्थना घरमां गयेलो एम जाणे के देवता माटे तैयार करेलो भात विगेरेनो आहार छे, तेमाथी थोडो थोडो ४ al काढे छे. अने वीजा वासणमां नाखे छे, तेवु देखीने अथवा कोइ देवना मंदिरमा लइ जवातुं जोइने अथवा थोडं थोडं वीजाने |
अपातुं जोइने तथा वीजाथी खवातुं अथवा देवळनी चारे दिशामां वळि तरीके उछाळातुं अथवा पूर्व बीजा ब्राह्मण विगेरेए त्यांथी ? 18 एकवार जमी आवीने घेर लइ जता होय, अथवा एकवार जमीआवीने श्रमण विगेरे एम माने के बीजीवार पण आपणने त्यां
मळशे, एम धारीने पाछा त्व राथी जता होय, आ देखीने कोइ भोळो साधु के लालचु साधु ते भोजनना स्वादथी ललचाइने तेम विचारे के हुपण त्यां जइने गोचरी लावु, आम करवू साधुने कल्पे नहि कारणके आयु करतां तेने पण वीजा माफक कपट करवू पडे.
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