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६ पश्चिमदिशामां गोचरी जाय, अने पश्चिमदिशामा जमण होय तो पूर्वदिशामां गोचरी जाय, एम बीजी पण दिशामां-जाणवं, एटले आचा० जमणनी जग्याए जवानो अनादर करे. ज्यां जमण होय त्यां न जवं, हवे जमण क्या क्या होय ते कहे छे, गाम ज्यां इंद्रियोनी
पुष्टि थाय अथवा ज्यां करो लागु पडे ते हे, तेज प्रमाणे नगर, खेर कर्बट मडंब पतन (पाटण). आकर द्रोणमुख नैगम आश्रम ॥८८०॥
राज्यधानी संनिवेश [आ बधा शब्दोनो अर्थ आचारांगना अगाउना भागमां पा० अपायेल छे] आवा. स्थानमां संखडि (जमण) जाणीने जवु नहि, केवळीप्रभु कहे छे के, ते जमण कर्मोना उपादानवें स्थान छे, अथवा वीजी पतिपां आदानने बदले आयतन | शब्द छे. तेनो अर्थ आ छे के संखडिमां जq ते दोपोनुं स्थान छे.
प्र०-संखडीमां जq ते दोषोनुं आयतन केवीरीते छे ? ते कहे छे “संखडिं संखडि पडियाएत्ति"-जे जे संखडिने उद्देशीने पोते जाय, तो ते जग्याए आमांना कोइपण दोष अवश्ये लागु पडे ते बतावे छे. आधाकर्म, औदेशिक, मिश्र, क्रीत, उद्यतक, आ-४ &च्छेद्य, अनिसृष्ट, अभ्याहृत आमांथी कोइपण दोपथी दोपित पोते भोजन वापरे, कारण के जमणनो करनारो एवुन मनमा धारे है
के, आ आवनारो साधु मारा जमणने उद्देशीने आव्यो छे, माटे मारे कोइपण व्हाने एने आपQ एम विचारी आधाकर्म दोषवाळं | भोजन विगेरे बनावी आपे, अथवा जे साधु लोलुपी थइने जमणनी बुधिए त्यां जाय, ते मूढ बनीने आधाकर्म विगेरेनुं भोजन वापरे. वळी संखडि निमिते आवेला साधुने उद्देशीने ग्रहस्थ वसति (उतरवार्नु स्थान) आ प्रमाणे करे ते कहे छे.
अस्संजए भिक्खुपडियाए खुड्डियदुवारियाओ महल्लिय दुवारियांओ कुज्जा, महल्लियदुवारियाओ खुड्डियदुवारियाभो कुज्जा, समाओ सिजाओ विसमाओ कुज्जा, विसमाओ सिज्जाओ समाओ 'कुज्जा, पवायाओ सिजओ