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तेज प्रमाणे अन्य सार्मिक वढे करायेलुं वैयावच्च अनुमति आपेल छे. हवे बीजानी वैयावच्च पाते करे ते बतावे छे' (च आचा०
समुच्चयना अर्थमां अने अपि पुनःना अर्थमां छे अने ते पूर्वना कहेवाथी कंइ विशेष बतात्रवा माटे छे. खलु शब्द वाक्यनी शोभा सम
* माटे छे) अने हुं अप्रतिज्ञप्त, कडेवायेलो छु अने जे बीजो भतिज्ञप्त वैयावच्च न करवाने माटे कहेवायेलो छे ते ग्लान साधुनी हुं ॥७७२॥ अग्लान (साजो) छु माटे निर्जराने उद्देशीने तेवा कल्पधारी साधार्मिक साधुनी वैयावच्च करूं;
प्र०-शा माटे ? तेना उपकार [शांति] ने माटे तेथी आ प्रमाणे प्रतिज्ञा करीने पण भक्त परिज्ञाए प्राणोने छोडे पण प्रति- 81 ज्ञानुं खंडन न करे, [आः सूत्रनो परमार्थ छे] हवे प्रतिज्ञा विशेषना द्वारवडे चोभंगी कहे छे. कोइ एक आवी प्रतिज्ञा करे छे के हुँ । बीजा ग्लान साधर्मिक साधुने आहार विगेरे लावी आपीश, तथा हुं वैयावच्च पण योग्य रीते करीश, तथा अपर [वीजा] सार्मिके आणेण आहार विगेरेने वापरीश, आ प्रमाणे प्रतिज्ञा करीने वैयावच्च करे (१) तथा बीजो साधु आवी प्रतिज्ञा करे के हुं बीजा। माटे गोचरी विगेरे शोधीश, पण वीजानो आहार विगेरे लावेलो खाइश नहि, (२) त्रीजो आवी प्रतिज्ञा करे के हूं वीजाने निमिते आहार विगेरे शोधीश नहि पण बीजानो लावेलो खाइश,[३]चोथो आ प्रमाणे प्रतिज्ञा करे, हुं बीजाने निमिते आहार विगेरे शोधीश नहि, तेम बीजान लावेलु खाइश पण नहि [४] आ प्रमाणे जुदी जुदी प्रतिज्ञाओ करीने कोइ जग्याए 'ग्लायमान (मांदो) पण थाय तो पण जीवितने त्याग करे, पण प्रतिज्ञानो भंग न करे..हवे आ.विषयने संपूर्ण करवा कहे छे. आ प्रमाणे कहेली विधि ए तत्वने जाणनारो ते साधु शरीर विगेरेनों मोह छोडनारो बनीने यथाकीर्तित धर्मनेज बरोबर जाणीने आसेवन परिज्ञावडे पालतो तथा लापविकने इच्छतो विगेरे चोथा उद्देशामां जे कडं, ते अहिं वधु-जाणी लेवू, तथा पोते कषायना उपशमथी शांत छे, अथवा अनादि
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