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आचा०
॥७६८।।
जे भिक्खू दोहिं वत्थेहिं परिवुसिए पायतइएहिं तस्स णं नो एवं भवइ तइयं वत्थं जाइस्सामि, से अहेसणिज्जाइं वत्थाइ जाइज्जा जाव एवं खुतस्स भिक्खुस्ल सामग्गियं, अह पुण सूत्रम एवं जाणिजा-उवाइकते खल्लु हेमंते गिम्हे पडिवणे, अहापरिजुन्नाई वत्थाई परिदृविज्जा, अहापरिजुन्नाइं परिदृवित्ता अदुवा संतरुत्तरे अदुवाओमचेले अदुश एगसाडे अदुवा अचेले लावियं आगममाणे तवे से अभिसमन्नागए भवइ जमेयं भगवया पवेइयं तमेव अभिसमिच्चा सबओ सवत्ताए सम्मतमेव समभिजाणिया, जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ-पुट्ठो अबलो अहमसि नालमहमंसि गिहतरसंकमणं भिक्खायरियं गमणाए, से एवं वयंतस्स परो अभिहडं असणं वा ४ आह१ दलइज्जा, से पुवामेव आलोइज्जा-आउसंतो ? नो खलु मे कप्पइ अभिहडं असणं ४ भुत्तए वा पायए वा अन्ने वा एयप्पगारे (सू० ६१६)
तेमांत्रण कल्पमा रहेल स्थविरकल्पी अथवा जिनकल्पी मुनि होय, पण चे कल्प (वस्त्र) धारण करनार अवश्ये जिनकल्पीमा होय, अथवा परिहार विशुद्धिक अथवा यथालंदिक के प्रतिमाधारी तेमांनो कोइ पण होय, आ सूत्रमा बतावेल जे जिनकल्पी विगेरे बे वस्त्रो धारण करनारो होय, आमां वस्त्र शब्द सामान्यथी लीधो छे, माटे एक सूत्रनुं बीजं उननु एम बे वस्त्र धारण करी संय- &
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