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सुत्रम्
॥७६७॥
आचा० द कर्म आसाधु खपावे छे, तेटलुंज आवा समयमां थोडा काळमां कर्म क्षय करी नाखे छे ते बतावे छे. 'सोऽपि वेहानस विगेरेथी मर
*नारो पण फक्त भक्त परिज्ञा विगेरे करनारो नहि पण आ साधु वेहानस विगेरे मरणमां ('दिति कारएति') विशेष प्रकारे अन्त॥७६७॥12 क्रिया करनारो ते व्यन्तिकारक छे तेवाने तेवा समयमा वेहानसादि मरण उत्सर्गज मार्ग छे. कारणके, आयु अकाळ मरण जे
5 अपवाद रुप छे, तेना वडे मरेला अनन्ता सिद्धो पूर्वे थया अने थशे. उपसंहार करवा कहे छे के, आ उपर बतावेलु
वेहानस विगेरे मरण मोह दूर थयेला साधुओनी कर्त्तव्यताथी आयतन [आश्रय छे अने अपाय दूर करतुं होवाथी हित छे.
जन्मांतरमां पण सुख आपनार होवाथी सुख छे. तथा काळ आवेलो होवाथी क्षम (युक्त) छे. तथा, कर्म क्षय करनार होवाथी 3 निःश्रेयस छे. तथा, पुण्यनो अनुगम उपार्जन करवाथी आनुगमिक छे, आ प्रमाणे सुधर्मास्वामी कहे छे:
चोथो उद्देशो समाप्त.
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पांचमो उद्देशो चोथो उद्देशो कहीने हवे पांचमो कहे छे. तेनो आ प्रमाणे संबन्ध छे गया उद्देशामा गार्धपृष्ट विगेरे बाळमरण बताव्यु पण आ उद्देशामां तो तेथी उलटुं भक्तपरिज्ञानामनुं मरण ग्लान भाव पामेला साधुए स्वीकार, ते कहे छे. तेथी आ संबन्धे आवेला तू उद्देशानुं आ प्रथम सूत्र छे.