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आचा०
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थइ जाय छे, अने कोपायमान थइ बीजा साथै लडे; तेथी एवा अनेक दोषो जे गुरुथी जुदा पड्या होय; सिद्धांतनो परमार्थ न | जाण्यो होय; तो तेने रक्षकना अभावे दोषो थाय; पण, गुरु साथ होय; तो, लडनारने उपदेश आपे केःआष्टेन मतिमता तत्त्वार्थान्वेषणे मतिः कार्या । यदि सत्यं कः कोपः ? स्यादनृतं किं नु कोपेन ॥१॥ बुद्धिमान पुरुषे क्रोध करतां विचार करवोः अने तत्त्व शोधवामां बुद्धि जोडवी. जो, ते कहेनारनुं बोलधुं सत्य होय; तो, कोप | केम करवो ? अने तेनुं वोलबुं जूठु होय; तो, तारे कोप शुं काम करवो ? ( कारणके के ते तने लागतुं नथी. )
अपकारिणि कोपश्चेत्, कोपे कोपः कथं न ते ! धमार्थकाममोक्षाणां प्रसह्य परिपान्थिनि ॥ २ ॥
जो तारे बगाडनार उपरज कोप करवो होय, तो ते कोप उपरज तारो कोप केम थतो नथी कारण के धर्म अर्थ काम अने मोक्ष आ चारेने अतिशय विघ्नकारक आ कोप छे, (कोपवाळो माणस चारेने भूली जाय, अने अनर्थ करे छे ) विगेरे प्रश्न - क्या कारणे वचनथी पण ठपको आपतां आ लोक अने परलोकनुं बगाडनार स्वपरने वाधा करनार क्रोधने लोको पकडी राखे छे ? उः - जेने उन्नत (घं) मान छे, अथवा जे पोताना आत्माने उंचो माने छे, तेवो माणस प्रबळ मोहनीय कर्मना उदद्यथी अथवा अज्ञानना उदयथी झायछे एटले कार्य अकार्यना विचारना विवेकथी शून्य थाय छे, तेवा मुंझायलाने कोइए शीखामण आपवा कांइ कं होय, अथवा मिथ्यात्वीए वाणीथी तिरस्कार कर्यो होय त्यारे, पोते जाति विगेरे कोड़पण जातनो मद उत्पन्न थतां मानरूप मेरुपर्वत उपर चढीने | कोपायमान थाय छे, के हुं आवो ! तेनो पण आ तिरस्कार करे छे, धिकार छे मारी उंच जातिने । धिक् छे मारा पुरुषार्थने !
सूत्रम्
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