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टू न होय ते नोनिपाती कहेवाय) एटले सिंहपणे घरथी नीकळी दीक्षा ले, अने लीधा पछी सिंह माफक पाळे, ते गणधर भगवंत जेवा पहेला भांगामां साधु जाणवा. .
सूत्रम् बीजो भांगो मूत्रवडे वतावे छे, पहेलां.चारित्र ले ते पूर्वोत्थायी पछी कर्म परिणतिना विचित्रपणाथी तेवी भवितव्यताना का
ताना का ॥५८१॥ ४ रणे नंदिषेण माफक पडी जाय (चारित्र मूकी दे) अने कोइ तो गोष्ठामाहिल माफक सम्यग्दर्शनथी पण दूर थय. है त्रीजा भांगामां अभाव होवाथी लीधो नथी, ते आ छे, 'जेनोपुखुट्टायी पच्छानिवाती' एटले पूर्व दीक्षा ले, तो पछी निपात |
के अनिपात कहेवाय. धर्मवाळो होय, तो धर्मनी चिंता कहेवाय, पण दीक्षा लीधानोज निषेध होय तो दीक्षामा रह्यो, के गयो, तेनी चिंताज ते संबंधी दूर रही, चोथो भांगो बतावे छे.
जेणे पूर्वे दीक्षा लीधी नथी; ते पाछळथी पडतो नथी, ते अविरत एटले, गृहस्थ जाणवो; तेने सम्यय विरतिना अभावथी | 12 पोते दीक्षा लेतो नर्थी; अने दीक्षा लीधा पछीज पडवानो संभव थाय; पण, दीक्षा लीधा विना तेनो संभव न होवाथी पडतो नथी || ४ अथवा ते भांगामां शाक्यमत विगेरेना साधुओ जाणवा. क.रण के तेमनामांचारित्र लेQ अने मुकीदेवू ए जैन रीतिए बन्नेनो अभाव छे.
शंकाः-गृहस्थो चोथा भांगामा छे ते बोलवू योग्य छे, कारणके तेमनामां सावध-अनुष्ठान छे, अने दिक्षा न लेवाथी महाव्रतने लेवानी प्रतिज्ञारूप-मंदीर (मेरु) पर्वतना आरोप (चडवा)ना अभावथी पडवानो अभाव छे. पण शाक्यमत विगेरेने दीक्षा लेवाथी पडवानो संभव छे, तो केवी रीते पडवानो अभाव न होय?
उत्तर:-'सोपि'-ते शाक्यादि साधु साधुसमुदायने पण पंचमहावतभारना आरोपणना अभावथी तथा तेमनां अनुष्ठानल
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