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ए राग माया ने लोभ एम वे भेदे छे, तथा द्वेप पण क्रोध अने मान, एम चे भेदे छे. ए चार स्थान बड़े वीर्य, उपगूढ, (जोडावा) आचा० थी ज्ञानावरणीय कर्म वांधे छे. ए प्रमाणे आठे कर्मने आश्रयी जाण, अने ते कपायो मोहनीय कर्मनी अंदर रहेला छे. अने आठे
भकारना कर्मनु मूळ कारण छे. काम गुणतुं मोहनीयपणुं वतावे छे॥२५०॥
अठविहकम्मरुक्खा सवे ते मोहणिजमूलागा। कामगुणमूलगं वा तम्मूलागं च संसारो ॥ १७८ ॥
पूर्वे का के कर्म पादप विगेरे तेनी व्याख्या करे छे. तेमां कर्मपादप क्या कारणवाला छे. तेनों उत्तर-आठ प्रकारना कर्मरूप वृक्षो छे. तेमन मुळ मोहनीय कर्म छे. एटले एकला कपायो न लेवा. पण काम गुणो मोहनीय मूळवाला छे. जे वेदना (संसार है। भोगववानी इच्छा) उदयथी काम थाय छे. ते लेवा. अने वेद. छे ते मोहनीय कर्ममा समावेश थाय छे. तेथी मोहनीच कर्म जे संसारर्नु मूळ कारण छे. ते संसार लेवो.
तेज प्रमाणे संसार कपाय, कामोर्नु परंपराए मोहनीय कर्म कारणपणाथी प्रधान भावने अनुभवे छे. (तेज कर्म बंधनमा अग्रेसर छे.) ते मोहनीय कर्मनो क्षय थवाथी वीजा कर्मनों अवश्य क्षय थशे तेज प्रमाणे. का छे. "जह मत्थयसूईऐ हयाए हम्मए तलो। तहा कम्माणि हम्मंति मोहणिजे स्वयं गए ॥१॥".
जेम ताडना झाडनी. जे मूइ मथाळे रहेली छे. ते नाश करतां ताडनं झाड नाश पामे छे, तेज प्रमाणे मोहनीय कर्म नाश पामतां बीजां कर्मो नाश पामे छे..
आ मोहनीय कर्म दर्शन मोहनीय अने चारित्र मोहनीय एम बे भेदे छे, ते वतावे छे.
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