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दुविहो अ होइ मोहो दसणमोहो चरित्तमोहो अ-। कामा चरित्तमोहो तेणऽहिगारो इहं सुत्ते ॥ १७९ ॥ आचाल दर्शन मोहनीय अने चारित्र मोहनीय एम बे भेदे का. अने बंधना हेतुन पण वे प्रकार पणुं छे ते बतावे छे.
सूत्रम् अईत (जिनेश्वर) सिद्ध, चैत्य, तप, श्रुतगुरु, साधु, संघना प्रत्यनीक (जिनेश्वरथी संघ सुधी जे पदो छे, जेमां गुण अने गुणी । ॥२५॥ दिए बंने आवे छे तेमना शत्रु) पणे जे वर्ते ते दर्शनमोहनीय कर्म वांधे छे. अने जेना वडे जीव अनंत संसाररूप समुद्रना मध्यमां|8॥२५१।।
पडे छे तथा तीव्र कषाय बहुराग द्वेषरूप मोहथी घेराएलो वनी देश विरति अने सर्व विरतिने हणनारो चारित्रमोहनीयकर्म बांधे छे. | तेमां मिथ्यात्त्व, सम्यग् मिथ्यात्त्व (मिश्र) अने सम्यक्त्व एम त्रण भेदे दर्शन मोहनीय-कर्म छे, तथा सोळ भकारना कपाय छे.
नव नोकषाय छे. एम पच्चीस भेदे चारित्रमोहनीय छे. (पहेला कर्मग्रंथमां मोहनीय कर्म जुओ.) तेमां काम ए शब्द विगेरे पांच है विषयो चारित्रमोह जाणवा; तेना वडे अहीं सूत्रमा अधिकार छे, कारण के, चाल विषयमां कषायोनुं स्थान छे; अने ते शब्दादि
पांच गुणरूप छे. अने चारित्रमोहनीय पूर्वे कहेली उत्तर प्रकृति जे स्त्रीवेद पुरुषवेद नपुंसकवेद तथा हास्य रतिलोभथी आश्रीत काम आश्रयवाळा कपायो संसारर्नु मूळ छे अने कर्ममा प्रधान कारण ए छे ते बतावे छे.
संसारस्स उ मूलं, कम्मं तस्सवि हंति य कसाया ॥ संसार ते नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव एम चार प्रकारे गतिरूप संसारर्नु भ्रमण छे. तेनुं मूळ कारण आठ प्रकारचें कर्म छे. ते | कर्मनुं पण मूळ कारण कषायो छे. ते क्रोध विगेरे संसारन निमित्त छे, अने ते प्रतिपादित शब्द विगेरे स्थानोनुं प्रचुरस्थानपणुं है. बताववा फरीथी स्थान विशेष अब्धी गाथा बड़े कहे. छे...... . . . . . .
SAIRAGAR