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आचा०
॥४९८॥
CREA-CASGARHICES
अनादि मिथ्यादृष्टिने त्रण पुंज कर्या विनानो होय तेने यथाप्रवृत्तकारण वाकीनां कर्म क्षीण थवावाळो होय तेने सोगरोपम कोडा-कोडीमां थोडी ओछी स्थिति होय; तेने अपूर्वकरणमां ग्रंथी भेदाता मिथ्याखने उदय न होय तेवू अंत:करण करीने अनिवृत्ति | करणवडे प्रथम सम्यक्त्व मेळवे छे, ते औपशमिक दर्शन छे, कयुं छे के...
"उसरदेसं दडेल्लयं च विज्झाइ वणदवो पप्प । इय मिच्छत्ताणुदए उवसमसम्म लहइ जीवो ॥१॥” * ॥४
खारवालो [उपर] देश [जग्या] मेळवीने जेभ वननो अग्नि (दावानल) बुझाइ जाय छे, तेम मिथ्यात्व उदय न आवे. त्यारे । औपशमिकसम्यक्त्वने जीव पाते छे. अथवा कोइ उपशमश्रेणीमां औपशमिक सम्यक्त्व पामे छे. [१] तेज प्रमाणे सम्यक्त्व पुद्गलने आश्रयी ने जे अध्यवसाय उत्पन्न थाय ते क्षायोपशमिक छे. [२] तथा दर्शनमोहनीय क्षय थवाथी क्षायिक छे. (३)
चारित्रना त्रण भेद (१) दर्शन प्रमाणे चारित्र पण उपशम श्रेणिमां औपशमिक [२] कपायना क्षय उपशमथी क्षायोपशमिक [३] तथा चारित्र मो। हनीय कर्मना क्षयथी क्षायिक चारित्र छे.
ज्ञानना चे भागो छे.-क्षायोपशमिक, अने क्षायिक तेमां चार प्रकारना ज्ञान आवरणीय कर्मनो क्षय उपशम थवाथ मनि ज्ञान विगेरे चार प्रकारनें क्षायोपशमिक ज्ञान छे, अने बधु घातीकर्म क्षय थवाथी क्षायिक केवळ ज्ञान छे.
आ प्रमाणे त्रणे प्रकारमा भाव सम्यक्त्वपणुं बतावे छते वादी, शंका-करे छे.