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समाधान (समाधी) नो हेतु होवाथी ते द्रव्यसम्यक् छे. आ प्रमाणे संस्कृत (संस्कार करेल) विगेरेमां पण समजवू, एटले (२) तेज आचा० रथ विगेरे भांगी जतां अथवा जुनो थतां तेने सुधारवो अथवा भांगेला भागने बदलवो ते समाधि आपनारो होवाथी द्रव्य सम्यक् छे. (३) जे बे द्रव्यनो संयोग 'नवो गुण बनाववा करे पण नाश करवा न करे ते खानार अथवा भोगवनारना मननी समाधिने
सूत्रम् ॥४९७॥ माटे दुधमां साकर मेळववी विगेरे छे, ते संयुक्त द्रव्य सम्यग् छे.
॥४९७॥ (४) तथा जे प्रयोगमा लीधेलु द्रव्य आत्माने लाभना हेतुथी समाधि माटे थाय छे, ते प्रत्येक द्रव्य सम्यक् छे. अथवा वीज प्रतिमां उपयुक्त शब्द छे एटले उपयोगमां लीधेलुं द्रव्य मनने समाधि दायक थाय ते उपयुक्त द्रव्य सम्यक् छे.
(५) तथा जड (त्यजेलं) भार विगेरे दूर करवाथी चित्तमां शांति थाय, ते त्यक्त द्रव्य सम्यक् छे, (६) दहीनुं वासण विगेरे | फुटी जतां कागडा विगेरेने आनंददायी थवाथी ते भिन्न, द्रव्य सम्यक् छे, (७) अधीक मांस विगेरे छेदवाथी [अथवा गुमडामा
नस्तर मुकवाथी जे शांति थाय ते छिन्न सम्यक् छे, आ साथे पण चित्तने समाधि आपनार होवाथी द्रव्य सम्यक् छे, पण जो ते 2वरोवर न थाय तो चित्तमां क्लेश थतां सम्यक् थाय छे, हवे भाव सम्यक् बतावे छे.
तिविहं तु भावसम्म दंसण नाणे तहा चरित्ते य । दसणचरणे तिविहं नाणे दुविहं तु नायव्वं ॥२१९॥ __ण प्रकारे भावसम्यक् छे, दर्शन ज्ञान चारित्र ए त्रण भेद छे, ते दरेक पण भेदवाळु छे, ते कहे छे, तेमां दर्शन अने चरण ४ दरेक त्रण प्रकारना छे, ते आ प्रमाणे.