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सूत्रम्
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वीजा आचार्थो नीचे प्रमाणे कहे छे:-(प्रथमनुं सूत्रकाव्य) वीजी रीते कहे छे:आचा०
"अवरेण पुदि किह से अनीतं, किह आगमिस्सं न सरंति एगे ॥
भासन्ति एगे इह माणवाओ, जह स अईअं तह आगमिस्सं ॥१॥" पूर्व जन्म साथे वीजा जन्मनो सवन्ध जाणता नथी, के केवीरीते अथवा क्या प्रकारे पूर्वे सुख दुःख हतुं, अने भविष्यमां केवो रीते सुख दुःख थशे ते जाणता नथी. अथवा वीजा वादीओ आम वोले छे के..
आमां शुं जाणवानुं छे? जेवीरीते हपणां पूर्वना रागद्वेषथी उत्पन्न थएला कर्मवढे जीवने बन्धायला कर्मनां फळ संसारमा भोगववां पडे छे. तेमज पूर्वे पण हतुं अने भविष्यमा थवा छे, (तेमां वधारे शुं जाणवानुं छे?) ___अथवा प्रमाद्र विपय कपाय विगेरेथी कर्मो एकठां थवाथी इष्ट अनिष्ट विषयोने अनुभवता जीवो सर्वज्ञनी वाणीरुप अमृतना है स्वादने न जाणनारा जेओ छे, तेमने जेम भूनकाळमां संसारमा सुख दुःख अनुभव्यु, तेवू भविष्यमां पण अनुभवशे.
पण जेओ संसार समुद्रथी तरवावाळा छे, तेओ कर्मनुं फळ जाणे छे, ते बतावे छे, ते सूत्रना वीजा काव्यमां कडे जे 5 जीवोन संसारमा फरी आवq नथी. तेओ सिद्ध छे, अथवा जेवुज जाणवार्नु छे तेवुज तेमने ज्ञान छे. तेवा सर्वज्ञो छे, तेओ अतीत 6 (जुना) पदार्थने भविष्यना रुपपणे नथी मानता, तथा भविष्यना पदार्थने भूतकाळना रुपपणे नथी मानता, कारण के परिणतिनी । M विचित्रता छे, मूत्रमा “अर्थ" शब्द फरी लेवानुं कारण ए छे के पर्यायरूप बदलाय छे (वाळक जुवान बुढो ए पर्याय छे भने ते
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