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सूत्रम्
॥४७॥
18 केण ममेथुप्पत्ती कहं इओ तह पुणोऽवि गंतवं? जो एत्तियपि चिंतइ इत्थं सो को न निविण्णो? ॥१॥ आचात
अहीं मारी उत्पत्ति केवीरीते थइ छे? अने अहींथी मारे क्यां जq छे ? जे माणस आटलं पण, अहीं चिंत; तो, तेवो केम ४७३॥
दुःख-संसारथी वैराग्यपाळो न थाय? (अर्थात् थायज!) पण, केटलाक महामिथ्याज्ञानियो कहे छे के-आ संसारमा अथवा मनुष्य-लोकमां जेवीरीते हाल मनुष्यो के, बोजां पाणीओ जेवी अवस्थामा छे, तेवीजरीते भूतकाळमां स्त्रीपुरुष नपुंसक सौभाग्यवाळो, दुर्भाग्यवाळो, तरो, शीयाळ, ब्राह्मण, क्षत्री, विटशुद्र विगेरे भेदोमां भोगवता हतां; अने तेवुज भविष्यमा थवानुं छे. (आ प्रमाणे जैनेतर एकवादीनो मत कह्यो. ते लोको एवं माने छे के जेम जीवो हालनी दशामा छे, तेवा भूतकाळमां हता; अने हवे पछी रहेशे.) (वीजो अर्थ) जेनाथी बीजो पर (श्रेष्ट) नथी ते संयम अपर छे, तेनाथी जेनुं चित्त रंगायलं छे. तेओ पूर्वे भोगवेलां विषयसुख विगेरेने (स्थूलभद्रमुनि माफक) याद करता नथी. केटलाक रागद्वेषथी मुकायला भविष्यना देव संवधी भोगोनी आकांक्षा राखता नथी. वळी आत्मा-रमणतामां रमता मुनिओने अमुक संसारी जीवने भूतकाळर्नु सुखदुःख के, भविष्यनुं थवानुं सुखदुःख लक्ष्यमा रहेतुं नथी; अथवा उत्तम ध्यानमां बेठेला साधुने केटलो काळ वीतीगयो; अथवा केटलो बाकी रह्यो ते पण लक्ष्यमां नथी. ____ अथवा लोकोत्तर पुरुषो जेओ रागद्वेपरहित छे, तेवा केवळी भगवंतो, अथवा चउदपूर्वी मुनिओ संसारी जीवने अनादि अनन्तकाळ सुधी ( अभव्य आश्रयी, अथवा वीजां बधा जीव आश्रयी ) दरेक काळमां सुख विगेरे केटलां इतां, अने आवशे तेनी गणतरी पण कही शकता नथी.
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