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आचा०
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कृत्य पोते न करे, सूत्रमा 'कंचण' विगेरे छे तेनी विभक्ति बदलीने त्रीजीमां अर्थ लइए, तो एम थाय के 'केनचित् कोइपण माणस आचा० । एवो नथी के एवो नथी के आवधा लोकमां रागद्वेष विनानो होय ते रागद्वेषना अभावे छेदे, भेदे, अर्थात् रागद्वेष छोड्या पछी छेदे भेदे नहि.
सूत्रम् जो के आ प्रमाणे गति आगतिना ज्ञानथी रागद्वेपनो त्याग थाय छे, अने तेना अभावथी छेदनादि संसार दुःखनो अभाव है। ॥६७२॥ थाय छे, तेवु मुनि जाणे छे, पण वर्तमान सुखछे देखनारा अमे क्याथी आव्या क्यां जइशुं ? अथवा अमने त्यां शुं मळशे, एवो ॥४७२॥
विचार नथी करता, तेथी रागद्वेप करीने नवां कर्म बांधीने संसार भ्रमणनी योग्यता अनुभवे छे. एवं सूत्रकार बतावे छे.
अवरेण पुचि न सरंति एगे, किम्मस तीयं किं वाऽऽगमिस्सं । भासंति एगे इह माणवाओ, जमस्स तीयं तमागमिस्सं ॥१॥ नाईयम न य आगमिस्सं, अहं नियच्छन्ति तहागयाउ । विहय कप्पे एयाणुपस्सी, निज्झोसइत्ता खवगे महेसी ॥२॥
उपरनी चे सूत्र गाथानो अर्थ कहे छे. पहेलां हुं कोण हतो ? के हुं हाल आवो छु ? एq केटलाक मोह अने अज्ञानथी घेरायेली वुद्धिवाळा जीवो जाणता नथी, एटले आ जीवने नरकादि भवथी उत्पन्न थयेलुं अथवा बाळ कुमार विगेरे वयवाळ एकटुं धयेलं पूर्वन दुःख विगेरे केवी रीते आवेलुं छे ? अथवा, भविष्यमां केवी रीते थशे ? एटले, आ विषय सुखना वांछक, अने दु:खना दवेपी जीवन भविष्यकाळमां शुं थशे.? ते तेओ जाणता नथी; पण जो, कदी तेओना हृदयमां भूत-भविष्यनी विचारणा होत; तो, तेजोने संसारमा रति (आनंद) थात नहीं, का छे केः
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