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सूत्रम् ॥४७१॥
६ रुप होय अथवा क्षुल्लक एटले मनुष्यरुप होय ( देवांगना अथवा सुंदर रुपवाळी स्त्री देखीने ) तेमां ललचाय नहि, अथवा देव | आचा० से संबन्धी के मनुष्य संवन्धी मोटुं नानुं रुप एटले तेमां पण मध्यम रूपवाळी के घणा रूपवाळी देवी के स्त्री होय तो तेमां लल
चावू नहिं, अहि “नागार्जुनीया" कहे छे. ॥४७१॥ 15 विसयंमि पंचगंमीवि, दुविहंमि तियं तियं ॥ भावओ सुटु जाणित्ता, से न लिप्पइ दोसुवि ॥१॥
शब्द विगेरे पांचे प्रकारना विषयोमा तथा बन्ने प्रकारमा एटले जे इष्ट अनिष्ट छे, तेमां हीन मध्यम उत्कृष्टने भावथी एटले ४ परमार्थथी जाणीने रागद्वेषवढे पाप कर्मथी न लेपाय, अर्थात् तेमां रागद्वेप न करे, तेमां शुं आलंबन ले के रागद्वेष न थाय ते कहे छे. आगमन तथा गमन ते तिर्यंच अने मनुष्यने चारे गतिमां आववा जवान छे. तथा देवता नारकीने तिर्यच मनुष्यमांथीज आवq जवु छे, नारकी माफक देवने पण बेज गति अगति छे, फक्त मनुष्यने मोक्ष गतिनो सद्भाव होवाथी पांच गति छे, आ प्रमाणे जीवने गति आगति थाय छे ते विचारीने संसार चक्रवाळमां कुवाना अरटना न्याये भ्रमण छे, ते समजीने अने मनुष्यपणामां मोक्ष मळे छे तेवू जाणीने मुगतिनो अंत लावनार जे रागद्वेष छे तेने दूर करीने आगति गतिने आपनार रागद्वेष जाणीने । ते बन्नेने दूर करी कोइ पण जीवने पोते तरवार विगेरेथी छेदे नहि, तथा भाला विगेरेथी भेदे नहि, तथा अग्नि विगेरेथी बाळे | नहिं तथा नरकगति विगेरे अथवा अनुपूर्वी विगेरे घणी वार विचारीने पोते हणे नहि.
अथवा रागवेषनो अभाव थाय तो उपर कहेलां पाप पोतानी मेळे दूर थाय, एटले रागद्वेष छोडनारो मुनि छेदवा विगेरेना