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ट्र बदलाय छे) पण द्रव्यार्थपणे तो त्रणे अवस्थामा एकपणुंज छे (वाळपणमां अने बुढापणमां जीवनो भेद नथी.)
सूत्रम् आचाल अथवा अतीत अर्थ ते विषय भोगादिक भोगवेलां अने भविष्य संबंधी देवांगनाना विलासने भोगववानां छे. तेने जेओ राग-181 द्वेषना अभाववाळा छे तेओ याद करता नथी अथवा वांछता नथी. (तु शब्द विशेष बतावे छे) जेम मोहना उदयथी केटलाक पूर्वना
P७५॥ ॥४७५॥ अथवा भविष्यना भोगोने वांछे छे, तेम सर्वज्ञ भोगोने इच्छता नथी; अने तेना मार्ग (शासन) मां चालनारा पण एवाज निःस्पृही 31 व होय छे ते बतावे छे, 'विहूय कप्पे.
एटले अनेक प्रकारे आठ प्रकारना कर्मने धोनार ते विधृत छे, अने कर्म धोवु ते साधुनो आचार छे, तेवो कल्प पाळनार है साधु विधूत कल्पवाळो कहेवाय, अने तेज सर्वज्ञनो अनुदी कहेवाय छे, अने ते अतीन अनागत विषयसुखनो अभीलापी न होय, वळी तेने बीजा क्या गुणो होय ते कहे छे.
पूर्वे बांधेलां अशुभ चीकणां कर्मनो क्षपक एटले नास करनारो छे,अथवा ते भविष्यमां नाश करनारो थशे [मूत्रमा 'निज्मोस । इत्ता' शब्द छे, तेनो अर्थ वर्तमान अने भविष्यनो लीधो छे]
कर्म नाश करवाने जे मुनि उद्यम करे ते धर्मध्यान अथवा शुक्ल ध्यान,ध्यानार महा योगीश्वरने संसारना सुख दुःखना ६ विकल्पनो नाश थवाथी हवे शुं थशे ते बतावे छे.
का अरई के आणंदे?, इत्थंपि अग्गहे चरे, सव्वंहासं परिच्चज आलीणगुत्तो परिवए,
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