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सत्रम
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आq शामाटे करे ते कहे छे. मूळ उत्तरप्रकृतिना भेदवाळू तथा प्रकृति, स्थिति, अनुभाव, प्रदेश, एम चार प्रकारे बन्धवाळं, तथा बन्ध उदय-सत्तानी व्यव- स्थावाल्लं, तथा बांधg स्पर्श करचो जोडावू, एकपणे मळवू; विगेरे अवस्थावालं कर्म छे अने ते थोडाक काळमां क्षय थाय; तेवू | नथी, तेथी काळ आकांक्षी कयु छे.
तेमां बन्धस्थाननी अपेक्षाए मूळ उत्तरमकृतिनुं बहुपणुं बतावीए छीए. जेमके:
वधी मूळ प्रकृतिओ अंतर्मुहूर्त सुधी साथे बांधे; ते आठ प्रकारनो कर्मबन्ध छे, अने आयुष्य न बांधे; तो, सात प्रकारनो छे, अने ते आयुने काळ जघन्यथी अंतर्मुहुर्त छे, अने उत्कृष्टथी तेना शिवायनां ३३ सागरोपममा पूर्वकोटीनो त्रीजो भाग बधारे छे, अने सूक्ष्मसंपरायनो मोहनीयकमनो बन्ध दूर थतां, तथा आयुना बन्धनो अभाव थवाथी छ प्रकारनो कर्मवन्ध छे, अने ते जघन्यथी एक समयनो अने उत्कृष्टथी अंतर्मुहर्त छे, तथा उपशांत क्षीणमोह तथा, संयोगी केवळीने सात प्रकारना कर्मना बन्धनो उपरम थतां एक प्रकारचें सातावेदनीयकर्म बन्धाय छे. ते जघन्यथी एक समय अने उत्कृष्टथी पूर्वकोडीमां थोडं ओछं छे.
हवे, उत्तरप्रकृतिनां बन्धस्थान कहे छे:ज्ञान आवरण, अने अंतरायना पांचे भेदन ध्रुवबंधीपणुं होवाथी एकज बंधस्थान छे, तथा दर्शनावरणीयनांत्रण वधस्थान कहे छे:
(१) पांच निद्रा अने चार दर्शन साथे रहेवाथी ते नवेनुं ध्रुव बन्धीपणुं होवथी नवविधनुं एक स्थान छे, (२) तेमांथी थीणद्धि निद्रात्रिक अनंतानुबंधीनी चोकडी साथे दुर थवाथी ते त्रणना बंधनो अभाव थतां छ प्रकृतिनो बन्ध ले (३) अपूर्व करणना संख्येय
पगडगडल