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आचा०
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भागे निद्रा अने प्रचलानो बन्ध दूर थतां चार प्रकारना दर्शनावरणनो बन्ध रहेवाथी ते त्रीजुं स्थान छे. वेदनीय कर्मनुं एक बन्ध स्थान छे. चाहे साता बांधे चाहे असाता बांधे, पण एक बीजानी विरोधी होवाथी बने साथे न बांधे. मोहनीयकर्मनां दश बन्धस्थान छे.
(१) एक मिथ्यात्व १, सोळ कषायो १६, कोइ पण एक वेद १, हास्य रतिनुं जोडकुं अथवा अरति शोकनुं एक जोडकुं तेमांथी एक जोडकुं लेतां ते बे २ तथा भय १, जुगुप्सा २, मळी फुल २२ प्रकृतिनो बंध होय छे.
(२) मिध्यात्वनो बन्ध दूर थतां सास्वादनगुणस्थनमां २१ नो बन्ध छे.
(३) तेमांधी मिश्रदृष्टि अथवा अरतिसम्यगदृष्टिने अनंतानुबन्धी चोकडी दूर स्वाथी १७ प्रकारनो बन्ध (४) तेमांथी देशविरति गुणस्थाने अप्रत्याख्याननी चोकडीना बन्धनो अभाव थवाथी १३ नो बन्ध छे,
(५) तेमांथी ममत्त अप्रमत्त अपूर्वकरणमां वर्तता साधुने प्रत्याख्याननी चोकडी दूर थवाथी ९ नो बन्ध छे.
(६) तेमांथी हास्य विगेरेनुं जोडकुं तथा भय जुगुप्सा दूर थवाथी फक्त ५नो बन्ध अपूर्व करणना चरम [ छेल्ला ] समये छे. (७) तेमांथी अनिवृत्तिकरणना संख्येय भाग वीते थके पुरुष वेदना बन्धनो अभाव थतां चारनो बन्ध छे. (८) तेमांथी तेज गुणस्थाने संख्येय भाग गये थके अनुक्रमे क्रोधनो क्षय थतां ३ नो बध छे.
(९) माननो क्षय थतां २नो बन्ध छे [१०] मायानो क्षय थतां १नो बन्ध छे त्यार पछी अनिवृत्तिकरणना छेल्ला समयमां मोनीयना बन्धनो अभाव थवाथी अबन्धक छे.
सूत्रम्
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