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आचा०
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रण दूर थतां, ते सर्वदर्शी, तथा सर्वज्ञानी थाय छे, अने कर्मर हित थयलो, अथवा सर्वज्ञ वनेलो बीजुं शुं मेळवे छे ते कहे छे:एस मरणा पमुच्चइ, से हु दिट्ठभए मुणी, लोगंसि परमदंसी विवित्तजीवी उवसंते समि सहिए सयाजए कालकंखी परिवए, बहुं च खलु पावं कम्मं पगडं (सू० १११)
ए सर्वज्ञ साधु मूळ अने अग्रनो रेचक [कर्मने तोडनारो] बनीने निष्कर्मदर्शी कहेवाय छे, ते मरणथी मुकाय छे, कारण के घातीकर्मे | दुर थवाथी अघातीकर्ममा रहेलं आयु नवा भवनुं बंधातुं नथी, अथवा वारंवार मरखुं, अथवा क्षणे क्षणे मरतुं ए मरणथी मुकाय छे अथवा वधोज आ संसार मरण युक्त छे तेथी पोते मुकाय छे वळी ते, मुनि संसारमा रहेलो भय, अथवा संसार संबंधी सात प्रकारनो भय तेने देखे छे, के (संसारीने आवा भयो आवे छे.) ते दृष्टभय कहेवाय छे, वळी ते छ द्रव्यना आधाररूप- लोक अथवा, चौद जीवस्थानवाळो लोक छे तेमां परम जे मोक्ष छे. अथवा तेनुं कारण संयम छे तेने देखवाना स्वभाववाळो होय ते परमदर्शी छे तथा स्त्रीपशु नपुंसक साधुना ब्रह्मचर्यने घात करनार छे, तेनाथी रहित एवा मकानमां रहे छे, ते द्रव्यथी विविक्त कहेवाय. तथा रागद्वेषथी रहित निर्मळ चित्त राखवाथी भावथी विविक्त कहेवाय, ते गुणवाळो होवाथी विविक्तजीवी कहेवाय छे. आवो मुनि इंद्रिय तथा मनने शांत राखवाथी उपशांत छे, अने ते पांच समितिथी युक्त होवाथी अथवा सरळ ते मोक्षमार्गे जवाथी समित छे, अने ज्ञान विगेरेथी युक्त छे, "तेम अप्रमादि पण छे. वळी ते मुनि तेवीरीते आखी जींदगी सुधी उत्तम गुणवाळी रहे; ते काळ" आकांक्षी कहेवाय; भने ए ममाणे पंडित मरणनी आकांक्षावाळो संयम - अनुष्ठानमां रहे.
सूत्रम्
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