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तेमांथी नीकळीने सुखी थाय छे अने विघ्नवाळा अने विघ्नरहित एवा मार्गनुं ज्ञान जेने छे ते सुखेथी पार पहोंचे छे. आदि शब्दथी आच० जाणवू के चोर विगेरेना भवमां विवेकी माणस सुखथी ते विघ्नने दूर करी सुखी थाय छे. तेज प्रमाणे साधु पण भावथी सदा विवेकी |
P होवाथी जागतो रहिने बधां कल्याणने मेळवे छे सुता अने जागता सबंधी गाथाओ कहे छे:॥४३३॥18| जागरह णरा णिचं जागरमाणस्स वडए बुद्धी । जो सुअइ नसो धपणो जो जग्गइ सो सया धन्नो ॥१॥RI
जागता माणसोनी बुद्धि बधे छे माटे हे माणसो ! तमे जागो (अल्पनिद्रा करो.) जे सुवे छे, ते धन्यवादने योग्य नथी, पण जागतो माणस धन्यवादने योग्य छे. | सुअइ सुअं तस्स सुअं संकियखलियं भवे पमत्तस्स । जागरमाणस्स सुअंथिरपरिचिअमप्पमत्तस्स ॥२॥
जे घणु सुवे छे तेने प्रमादथी तेनुं भणेलु शंकावालु तथा भुलोवाळु थाय छे, पण अप्रमादी जागता साधुनु भणेलं स्थिर परिचयवाडं (भुल वगरनु) रहे छे. नालस्सेण समं सुक्ख, न विज्जा सह निदया। नवेरग्गं पमाएणं, नारंभेण दशलुया ॥३॥
आळसनी साथे सुख नथी. ( आळसुने सुख न होय; ) तथा निद्रानी साथे विद्या न होय; प्रमादनी साथे वैराग्य न होय; तथा आरंभ करनारने दया न होय. जागरिआ धम्मीणं, आहम्मीणं तु सुत्तया सेआ। वच्छाहिव भगिणाए अहिंसु जिणो जयंतीए ॥४॥
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