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आचा०
॥४३२॥
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अने उदय तो उपशमक, अने उपशांत मोहवाळा मुनिओने पण होय छे. एथी, निद्रा प्रमादने दुरंत कह्यो छे.
(दर्शनावरणीय कर्मनी नव प्रकृतिमां पांच निद्रा छे, तेमां निद्रा, प्रचला, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, अने थीणद्धि अनुक्रमे ५ प्रमाणमां वधारे निद्रा छे, तेनुं वर्णन कर्मग्रंथमां छे, त्यांथी जोQ. अहीं एटलं कहेवानुं छे के, परमार्थ (मोक्षन) लक्ष राखवू; अने वने त्यांसुधी अल्प निद्रा करवी.) ___ अने द्रव्यथी निद्रामा सुतेलो दुःख पामे छे. (जेमके, ऊंघणसी माणस घरमां आग लागतां बळीजाय छे, घरमांथी धन चो-४ राइ जाय छे.) तेज प्रमाणे भावथी सुतेला पण दुःख पामे छे ते बतावे छे. जह सुत्त मत्त मुच्छिय असहीणो पावए बहुं दुक्खं । तिव्वं अपडियारंपि वट्टमाणो तहा लोगो॥नि. २१३॥
निद्रार्थी सुतेलो तथा दारु विगेरेना निशाथी गांडो थएलो तथा घणो मार मर्मस्थनमां पडवाथी बेशुद्ध बनेलो तथा वायु विगेरे दोपथी चक्री आवतां परवश यएलो जीव बहु दुःख पामे छे छतां पोते ते वखते वदलो के उपाय लइ शकतो नथी तेज प्रमाणे * भाव निद्रा एटले मिथ्यात्वअविरति, प्रमाद, कपाय विगेरेमा सुतेलो जीव समूह नरक विगेरेना भवनां दुःखो भोगवे छे, हवे बीजी रीते उलटा दृष्टांतथी उपदेश देवा कहे छे:एसेव य उवएसो पदित्त पयलाय पंथमाईसुं । अणुहवइ जह सचेओ सुहाइंसमणोऽवि तहचेव ॥नि.२१४॥
उपर कहेलो उपदेश जे विवेक अने अविवेक संबंधी थाय छे. ते वतावे छे जेमके सचेतन (बुद्धिमान) विवेकी आग लागतां