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आचा०
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धर्मोजीवोने जागवुं सारं, अधर्मीने सुबुं सारुं एवं भगवान् महावीरे वत्स देशना राजानी बेन जयंती श्राविकाने कां छे:सुयय अयगरभूओ सुअंपि से नासई अमयभूअं । होहिइ गोणव्भूओ नहंमि सुए अमयभूए ॥५॥ जे अजगरनी माफक सुवे छे, तेनुं अमृत जेतुं भणेलुं नाश थाय छे, तथा तेने अमृत जेतुं भणेलं नाश थतां मुडदाल-वळदीया माफक तेनुं अपमान थाय छे.
आ प्रमाणे दर्शनावरणीय कर्मना उदयथी कोइक वखत कोइ साधु स्रुतो होय; पण मोक्षाभिलाषी, अने यतनावाळो होवाथी; तथा तेणे दर्शन मोहनीयरुप - निद्रा दुर करवाथी ते जागतोज छे. पण जेओ, अज्ञानना उदयथी सुतेला छे, ते अज्ञानीज खरा सुतेला छे, अने अज्ञान ते महादुःख छे, अने ते दुःख जंतुओने अहितकारी छे, ते सूत्रकार बतावे छे.
लोयंसि जाण अहियाय दुक्खं समयं लोगस्स जाणित्ता, इत्थ सत्थोवरए, जस्सिमे सदा य रूवा य रसाय गंधा य फासा य खभिसमन्नागया भवंति (सूत्र १०६)
छ जीवनीकाय संबंधी तुं दुःखने जाण; एटले अज्ञान अथवा मोह (मूढपं) ते जीवने नरकादि भवमां दुःख आपनारुं अतिने माटे छे, अथवा तेनुं अज्ञान, तेने अहींयाज बंधने माटे, वधने माटे, तथा शरीर, अने मन संबन्धी पीडाने माटे थाय छे. ( अर्थात् गुरु शिष्य कहे छे केः- आ संसारमां अज्ञानी जीवो पोते अज्ञानदशामां पापो करीने नरक विगेरेमां जाय छे, अने त्यां ता, अहीं अनेक प्रकारनां दुःख सहे छे) ते तुं ध्यानमा राख; अने अज्ञानने छोड. हवे एम जाणवानुं फळ बतावे छे.
सूत्रम्
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