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धर्म ते श्रमण धर्ममां जे साधु प्रमाद करे, पोतानी क्रिया न करे. अथवा जेनाथी अर्थ सधाय ते धन धान्य, सोनुं विगेरे आचा०
मेळवना उपाय करे, तेवाने शीत (ठंडो) परिपह कहे छे, पण जे साधु प्रमाद न करे अने संयममा उद्यम करे ते उष्ण परिषह कहेवाय छे. ( सूत्रमा ‘णं' शोभा माटे छे) हवे उपशम पदनी व्याख्या करे छे.
सूत्रम् ॥४२६॥ सीईभुओ परिनिव्वुओ य संतो तहेव पण्हाणो (ल्होओ) । होउवसंत कसाओतेणु वसंतो भवे जीवो २०६ ॥४२६॥
उपशम गुण क्रोध विगेरेना उदयना अभावमां होय छे, अने ते कपाय अग्नि ठंडो थवाथी आत्मा ठंडो थाय छे, तथा क्रोध ४ विगेरे अग्निनी ज्वाळा वुझे त्यारे ते परिनित थाय छे, अने रागद्वेप रुप अग्निना उपशमथी उपशांत छे तथा क्रोधादि परिताप 8दर थवाथी आत्मा आनंदित थाय छे अने तेज सुखी छे कारण के जेने कषायो शांत छे तेज सुखी छे. अने तेथीज उपशांत कषा5 यवाळो आत्मा शीत थाय छे. आ वां पदो एक अर्थवाळां छे. एटले (१) शीतीभूत (२) परिनिर्वृत (३) शांत (४) मल्हाद. आ|2|| 8 उपशांत कपाय कहेवाय छे (आ पदोनो अर्थ क्रोधादिने शांत करवानो छे)
हवे विरतिपद कहे छे. 5 अभय करो जीवाणं सीय घरो संजमो भवइ सीओ । अस्संजमो य उण्हो, एसो अन्नोऽवि पज्जाओ ॥२०७॥
जीवोने अभय करवानो आचार ते शीत (मुख) छे. तेन घर छे, ते, प्र. क्यु? उत्तर. सतर प्रकारनो संयम पाळवो ते शीत छे. कारण तेमां वधां दुःखनो हेतु जे रागद्वेप विगेरेनां जोडलां छे, ते विरतिमां दूर थाय छे. एथी, उलटो असंयम ते उष्ण छे..
SESSESSESPECTATUS