________________
by
--
-
नारनुं कंइ गणत्रीमा छे ? (नकामुं छे.) आचा०
आ प्रमाणे मुगांने पण एकांत दुःखनो समूह भोगववान छे. कर्जा छे केः
"दुःखकरमकीर्तिकर, मुकत्वं सर्वलोकपरिभृतम् । प्रत्यादेशं मूढाः कर्म कृतं किं न पश्यन्ति ? ॥१॥" ॥३४०॥
दुःखने करनार अपजशवाल्लं सर्वलोकमां निंदा पात्र मुंगापणुं छे, ते पोतानाकर्मोनु करेलुं फळ वीजाने भोगवाताने मूढो केम 18जोता नथी ? (पोते पाप करशे तो, तेवु फळ भोगवईं पडशे.) तेज प्रमाणे काणापणं पण दुःखरूपे छे. कयुं छे:
“काणो निमग्न विषमोन्नतदृष्टिरेकः शक्तोविरागजनने जननातुराणाम् ॥ . यो नैव कस्यचिदुपैति मनःप्रियत्वमालेख्यकर्मलिखितोऽपि किमु स्वरूपः?
विपमस्थानमां डुबेलो, जेने एफज दृष्टि ( आंख ) छे. जे पोते काणो होवाथी वैराग्य उत्पन्न करवामां शक्तिवान छे, अने 18/ जन्मदुःखीओमां ते छे पोते कोइनां पण मनने वहालो लागतो नथी. आलेखवा जोग कर्मथी लखायो छतां; जे वीजाने वहालो न ४ लागे; तेनुं स्वरूप गइ गणत्रीनुं छे ?
आ प्रमाणे कुंटपणुं एटले, जेना हाथपग वांका होय; अथवा ठींगणापणुं होय; अथवा जेनी पीठ वडनी ( सुंधाना ) आकारे [2] होय; तथा रंगे कळो होय; तथा सबळपणुं होय. आQ स्वाभाविक कदरपुं शरीर होय अथवा पछवाडे कर्मना वशथी तेवो थाय;
the SASHEGHOSSES
GRER