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आचा०
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अंदर रहेलां बधा भावोने जाणनारा सर्वज्ञ तर्थकर प्रभुए देव मनुष्यनी सभामां बधाए समजी शके तेवी तथा बधाना मनना संशय छेदनारी वाणीवडे आ· मार्ग कह्यो छे. पोते ते प्रमाणे वर्त्तेला छे एवो आ मार्ग जाणीने उत्तम पुरुषे उपर बतावेलां पाप कृत्योने छोडीने वधां तत्व जाणीने पोतानो आत्मा पापोमां न लेपाय तेम सर्व प्रकारे करवुं. आ प्रमाणे हुं कहुं हुं बीजो उद्देशो समाप्त थयो. हवे त्रीजो उद्देशो कहे छे.
वीज उद्देशानी साथै त्रीजानो आ प्रमाणे संवन्ध छे. गया उद्देशामां कहां के संयममां दृढता करवी अने असंयममां उपेक्षा करवी अने ते बन्ने पण कपाय दूर करवाथी थाय तेमां पण मान उत्पत्तिना आरंभथी उंच गोत्रमां जन्मे छे ते उत्थापेलो (अहंकारी) थाय तेथी ते दूर करवा कद्देवाय छे तेथी वीजा अने त्रीजानो आ संवन्ध छे के बुद्धिमान साधु राग द्वेषमां न लेपाय तेज प्रमाणे बुद्धिमान साधु उंच गोत्रना अभिमानमां पण न लेपाय शुं मानीने अहंकार न करवो ते सिद्धांतकार बतावे छे.
से असई उच्चागोए असई नीआगोए, नो हीणे नो अइरिते नोऽपीहए, इय सखाय को गोयावाइ को माणावाई ? कंसि वा एगे गिज्झा, तम्हा नो हरिसे नो कुप्पे, भूएहिं जाण पडिलेह सायं सू. ७७
आ संसारी जीव अनेक वार मान सत्कारने योग्य एवा उंच गोत्रमां आव्यो छे तथा अनेकवार नीच गोत्रमां ज्यां लोको निंदे तेवामां पण पोते जनम्यो छे ते कहे छे. नीच गोत्रना उदयथी अनन्तकाळ तिर्येचगतिमां संसारी जीव रहेल छे त्यारपछी भटकनो जीव नाम कर्मनी ९२ उत्तर प्रकृत्चिना कर्मवाळो वनी तेवा तेवा अध्यवसाये उत्पन्न थयेलो आहारक शरीर तेनुं संघात बन्धन
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सूत्रम्
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