________________
U
आचा०
सूत्रम्
॥३२३॥
NA-%
ROSECCO
तेणे भोगो न स्वीकार्या.
उपर प्रमाणे सुंदर भोगो जेणे त्याग्या; ते त्यागवाथी बीजुं पण त्यागेलं जाणवू ते आ प्रमाणे-क्रोधने क्षमाथी, तथा मानने है| कोमळताथी, मायाने सरळताथी, ए प्रमाणे बधा दुर्गुणोने निंदी उत्तम साधु छोडे छे.
सूत्रमा लोभ लेवानुं कारण ए छे के, ते वधा कषायमा मुख्य छे ते बतावे छे. ते लोभमां पडेलो साध्य असाध्यना विवेकथी ४ ॥३२३॥ | शून्य छे तथा कार्य अकार्यना विचारथी रहित वनी ने एक धनमांज दृष्टि राखनारोज पापना मूळमां उभो रहीने सर्व क्रियाओ करे छे कयुं छे के. 4 "धावेइ रोहणं तरइ सायरं, भमइ गिरिणिगुंजेसुं । मारेइ बंधवंपिह पुरिसो तो होइ धणलुद्धो ॥१॥
जे धननो लोभीओ होय ते पहाड चढे छे समुद्र तरे छे पहाडनी झाडीमां भमे छे बंधुओने पण मारे छे. अडइ बहुं वहइ भरं, सहइ छहं पावमायरइ धिहो। कुल सील जाइपच्चय, विइं च लोभदुओ चयइ॥२॥" 61 ___ घणु भटके छे घणोभार वहन करेछे भूखने सहे छे. पाप आचरे छे कुळ शील जाति विश्वास धीरज ए वधाने लोभथी पीडा- | एलो घृष्ट पुरुष त्यजे छे.
तेथी आ प्रमाणे उत्तम साधुए प्रथमथी लोभ विगेरेथी दीक्षा लीधी होय अने तेवा भोग मळतां लालच थायतो पण मन दृढ । द करीने लोभ विगेरेनो त्याग करवो केटलाक लोभ विना पण दीक्षाले छे ते बतावे छे.
SHRAA