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________________ आचाल دوره به وبلاحد موح सूत्रम् ॥३२२॥ ॥३२२॥ CROSAROG4 जेओ उपर कहेली अप्रशस्त (संसारी विपय सुख) रतिथी दूर थयला छे, अने उत्तम रति (चारित्रमा प्रेमवाळा) छे, ते केवा : होय छे ते वतावे छे. विमुत्ता हु ते जणा, जे जणा पारगामिणो, लोभमलोभेण दुगुंछमाणे लढे कामे नाभि गाहइ ७४ द्रव्यथी एटले धन सगाना अनेक रीतना प्रेमथी मुकायला; अने भावथी विपय कषायथी प्रत्येक समये छुटता साधुओ जे भविष्यकाळमां वधारे वधारे निर्लोभी बने छे, ते पुरुपो सर्व प्राणीने समानभावे गणी निर्ममत्ववाळा बनी (ससारथी) पारगामी बने छे. पार ते मोक्ष छे, कारणके, संसार-समुद्रना किनारे जवानी वृत्तिनां कारणो ज्ञान, दर्शन, चारित्र ए त्रण छे, ते त्रणने पार कहे छे. जेम, लोकमां सारा वरसादने चोखानो वरसाद कहे छे. एटले कारणने कार्यमा समाव्यु; तेथी ते प्रमाणे ज्ञान दर्शन चारित्रनो परे जवानो आचार जेमनो छे, तेओ संसारना मोहथी के, विषयकपायथी मुक्त थाय छे. ___ प्रश्नः-तेओ केवीरीते संपूर्ण पारगामी थाय ? उत्तरः-जोके, आ लोकमां लोभछे, ते वधाने तजवो दुर्लभ छे. जेमके क्षपक श्रेणीमांचढेला मुनिने पण ओछो ओछो करतां जरा जरापण लोभ रहे छे, तेवा जरा लोभने पण उत्तम साधु संतोषबडे पूर्वना लोभने निंदतो; अने छोडतो सामे आवता सुंदर विलासोने (लोको प्रार्थना करे; छतां पण) सेवतो नथी जेम महात्मा पोताना शरीरमां पण महत्व रहित थयलो छे, ते पर वस्तुना विषयमुखमां लुब्ध थतो नथी जेमके, ब्रह्मदत्त, चक्रवत्तिए पोताना पूर्वभवना भाइ चित्रमुनिने ओळखीने प्रार्थना कर्या छतां पण, SAGARRORCHASHA-94-5
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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