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___अथवा जेने अरति प्राप्त न थइ होय; तेनेज एम कहेवाय छे, पण आ उपदेश संयम-विषयमां बुद्धिमान पुरुषने कहेवाय के, प्राचा० संयममां अरति न करवी; तथा संयममांथी अरति दुर करनारने केवा गुण मळे ते कहे छे:
सूत्रम् "खणं सि मुक्के" विगेरे बारीक काळने क्षण कहे छे. ते क्षण, जुनी साडी (वस्त्रने) फाडतां जेटली वार लागे; तेथी पण वा४रीक काळ समय छे. आवा सूक्ष्म संयममां पण कर्म जे आठ प्रकारनां छे, अथवा संसारबंधन छे ते बंधन नथी. भरत महाराजा 8 ॥३१९॥
माफक मोह मूकी दे, तो तेनुं कल्याण थइ जाय. (केवळज्ञान पामीने मोक्षमां जाय; ) अने जेओ उपदेश न माने; तेओ कंडरीक Mमुनि माफक चार गतिमा भ्रमण करे छे, अने दुःखसागरमा डुबे छे, तेज कहे छे:
अणाणाय पुठ्ठावि एगे नियति, मंदा मोहेण पाउडा, अपरिग्गहा भविस्सामो, समुट्टाय लके कामे । 8/ अभिगाहइ, अणाणाए मुणिणो पडिलेहंति, इत्थ मोहे पुणो सन्ना नो हव्वाए नो पाराए (सूत्र-७३)
हित मानवु अहित छोडवं, ए जिनेश्वरली आज्ञामां छे. तेथी विरुद्ध चालवू ते अनाज्ञा छे. जे पुरुषो आज्ञावहार थइने परिषहद अने उपसर्गथी कंटाळीने, अथवा मोहनीयकर्मना उदयथी कंडरीक विगेरे मुनिओनी माफक संयमथी भ्रष्ट थाय छे, ते जडपुरुषो जेमने करवा न करवानो विवेक नथी; तेओ मोहथी, अथवा अज्ञानथी घेरायला छे. कर्तुं छे केः__"अज्ञानं खल्लु कष्टं, क्रोधादिभ्योऽपि सर्वपापेभ्यः। अथ हितमहितं वा न वेत्ति येनावृतो लोकः ॥ १॥”
खरेखर, क्रोध विगेरे बधां पापोथी पण अज्ञान मोटु पाप छे, ते घणु दुःख आफ्नार छे, ते अज्ञानथी घेरायलो माणस पोताना
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