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सूत्रम् ॥३२०॥
15/ हित-अहित पदार्थने जाणतो नथी. आचा०
आ प्रमाणे मोहथी घेरायलो जडमाणस चारित्र पामेलो छतां, कर्मना उदयथी, अथवा परिसहना उदयमां चारित्र धारण करेलो
चारित्र मूकवा इच्छा करे छे अने वीजा साधुओ पोतानी रुची प्रमाणे वृत्ति रचीने जुदा जुदा उपायोबडे लोक पासेथी पैसा ग्रहण ॥३२०॥ करता छता कहे छे के:-अमे संसारथी खेद पामेला छीए; अने मोक्षनी इच्छावाळा छीए. तोपण, तेओ (अंतरंगत्यागी न होवाथी)
जुदा जुदा आरंभमां, तथा विपय-अभिलापामां वर्ते छे ते वतावे छे.
मन, वचन अने कायाना कर्मवडे जेनाथी घेराय ते परिग्रह छे. ते परिग्रह जेमनामां नथी; ते अपरिग्रहवाळा अमे थइशु एवं बौद्धमत विगेरेना साधुओ माने छे, अथवा जैनदर्शनमा जे साधुओए साधुवेष पहेरेलो छे, तेओ पछी इच्छानुसार (भोळा माणसोने ठगीने) परिग्रह धारीने भोगो भोगवे छे. जे प्रमाणे निस्पृहता धारवी जोइए; तेज प्रमाणे वीजा महाव्रतो पाळवां जोइए; एटले
जैनेतर मतवाळाए, अथवा पासत्थ (वेप मात्र धारी जैनसाधु) जेम परिग्रह धारेछे तेवीरीते मोढेथी कहे के, अमे सर्व जीवोना रक्षक M(अहिंसक) छीए; छतां तेओ स्वार्थना माटे हिंसा करे छे, तेवीजरीते उपरथी कहे छे के:-अमे साचुं बोलीए छीए; अने खरीरीते
तो, तेओ जुटुं वोले छे, जेम चोरी करता होय; छतां कहे के, अमे चोरी करता नथी; तेथी आq करनारा शैलुष (ठगनी) माफक 8| बोलवा जुडुं, अने करवानुं जुईं. एवा जगतने ठगनारा भोगनी इच्छाथीज वेप मात्रने धारे छे. का छे के:
“स्वेच्छाविरचितशास्त्रः प्रत्रज्यावेषधारिभिः क्षुद्रैः। नानाविधैरुषायैरनाथवन्मुष्यते लोकः ॥ १॥"
SEISESSUARA TOCHIGIGOGOs
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