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आचा०
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विस्तारने मेळववा चाहे छे. पण जेओ विद्वान छे, तेनुं चित्त मोटा मोक्ष मार्गमां एकतान वालुं छे. कारणके श्रेष्ट हाथी नाना पातळा थडवाला झाडनी साथै पोतानुं शरीर घसतो नथी.
आचार्यनो उत्तरः-- अमे तेने जुटुं कहेता नथी. कारण के, चारित्र पामेलाने आ उपदेश छे, अने चारित्रमाप्ति ज्ञान शिवाय नथी; कारण के चारित्रनुं कारण ज्ञान छे अने कार्यए चारित्र छे. तथा ज्ञान, अने अरति तेने विरोध नथी; परंतु रतिनो विरोधी अरति छे. तेथी संयममां जेने रति छे, तेनी साथै अरति बाधारूप छे, परंतु ज्ञाननी साथे तेनो विरोध नथी; कारणके, ज्ञानीने पण चारित्र मोहनीयना उपशमथी संयममां अरति थाय छे, कारण के, ज्ञान पण अज्ञाननुं वाधकज छे, पण संयमनी अरतिनुं बाधक नथी; तेज कं छे:ज्ञानं भूरि यथार्थ वस्तुविषयं स्वस्य द्विषो बाधकं, रागारातिशमाय हेतुमपरं युङ्क्ते न कर्तृ स्वयम् । दीपो त्तमसि व्यक्ति किमु नो रूपं स एवेक्षतां, सर्वः स्वं विषयं प्रसाधयति हि प्रासङ्गिकोऽन्यो विधिः॥१॥” घं ज्ञान यथार्थ वस्तुविषय संबंधी छे, ते पोताना शत्रु अज्ञानतुं बाधक छे. रागनो शत्रु, शम (शांतिने) माटे बीजो हेतु पोते जोडतो नथी. जेम दीवो छे ते पोते अंधारामां रूपने प्रगट करे छे, तेज अहींया रुपने जुओ; कारणके, सर्व प्रासंगीक विधि पोतपोताना विषयने साधे छे. तथा आचार्य कहे छे केः- आ तमारा कानमां आव्युं नथी.
'बलवानिन्द्रियग्रामः, पण्डितोऽप्यत्र मुह्यतीति'
इंद्रियसमूह बळवान छे, अने तेमां पंडित पण मुंझाय छे, एथी तमारुं कहेतुं कई विसातमां नथी.
सूत्रम्
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