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________________ लोकसार [ ३ ने ही सत्य और निशंक वस्तु (सिद्धान्त) बतलाई है,' सहिणु नहीं होना चाहिये । कारण यह कि जिनप्रवचन को सत्य मानने वाले, श्रद्धावान् समझे हुए और बराबर प्रवज्या को पालने वाले मुमुक्षुत्रों को कोई बार श्रात्मप्राप्ति हो जाती है, तो कोई बार जिन प्रवचन को सत्य मानने वाले को आत्मप्राप्ति नहीं होती । उसी प्रकार कितने ही ऐसे भी होते है जिनको जिन प्रवचन सत्य नहीं जान पडने पर भी ग्रात्मप्राप्ति होती है, तो कितने ही ऐसे भी होते हैं जिनको जिन प्रवचन सत्य नहीं जान पडता और आत्मप्राप्ति भी नहीं होती । [ १६१, १६३ ] इस प्रकार श्रात्मप्राप्ति होने की विचित्रता समझ वर समझदार मनुष्य अज्ञानी को कहे कि, भाई' तू ही तेरी ग्रात्मा के स्वरूप का विचार कर, ऐसा करने से सब सम्बन्धो का नाश हो जायेगा | खास बात तो यह है कि मनुष्य प्रयत्नशील है या नहीं ? " कारण यह कि कितने ही जिनाना के विराधक होने पर भी प्रयत्नशील होते है और कितने ही जिनाज्ञा के ग्राराधक होने पर भी प्रयत्नशील नहीं होते हैं । [ १६३, १०६ ] 66
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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