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________________ छठा अध्ययन -(9) कर्मनाश ६८६९६२ ( 3 ) प्रकार जिस प्रकार पत्तो से ढके हुए तालाब में रहने वाला कड्या सिर उठा कर देखने पर भी कुछ नहीं देख सकता और जिन प्रकार दुख उठाने पर भी वृक्ष अपना स्थान नहीं छोड सकते, उसी रूप याद में श्रामस्त जीव अनेक कुलो मे उत्पन्न होकर तृष्णा के कारण तडफडते रहते है पर मोद को प्राप्त नहीं कर सकते। उन्हें कंठमाल, कोड, क्षय, श्रपम्भार, नेत्र रोग, जटता, इंटापन संघ निक्ल याना, उदररोग, सूत्र रोग, सूजन, भस्मक, कंप, पीठ सर्पिणी, हाथीपगा और मधुमेह इन सोलह में से कोई न कोई रोग होता ही है | दूसरे नेक प्रकार के रोग और दुख भी वे भोगते है । उन्हें जन्म-मरण तो अवश्य ही प्राप्त होता है । यदि ये देव भी हो तो भी उनको जन्म-मरण उपपात औौर च्यवन के रूप में होता ही है । प्रत्येक को अपने कर्मों के फल अवश्य ही भोगने पढ़ते है । उन कर्मों के कारण उनको अन्धापन मिलता है या उन्हें अन्धकार में रहना पडता है । इस प्रकार उनको बारम्बार छोटे-बड़े दुख भोगने ही पढ़ते है । और ये जीव एक दूसरे को भी तो सताते रहते है । इस " लोक के इस महाभय को देखो । वे सब जीव अति दुखी होते है |
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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